भाजपा का लक्ष्य अब केजरीवाल मुक्त भारत

bjp logo-अरुणेश सी दवे- नरेन्द्र मोदी और उनके समर्थक चंद दिनों पहले तक कांग्रेस मुक्त भारत का ख्वाब देखा और दिखाया करते थे। जाहिरन वे अब भी यही काम कर रहे है लेकिन आज उनकी सारी उधेड़बुन केजरीवाल मुक्त भारत के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। अरविंद केजरीवाल ने प्रतिद्वंद्वीविहीन नरेन्द्र मोदी के सामने न केवल एक सक्षम विकल्प बनने में सफलता पाई है बल्कि एक कुशल सर्जन की तरह केजरीवाल ने नरेन्द्र मोदी की नीतियों और विकास के चमकीले आवरण को जनता के सामने खोल कर रख दिया है। बीजेपी के नेता और समर्थक कांग्रेस को डाकू और खुद को छोटा-मोटा चोर दिखा कर भ्रष्ट व्यवस्था पर केंद्रित जिन सवालों को ढक दिया करते थे, आज वे ही सवाल खुले मैदान में उनका मुंह चिढ़ा रहे हैं। आखिर सवाल मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी का नहीं बीजेपी के चरित्र का है। क्या मोदी लोकसभा का चुनाव ईमानदारी से प्राप्त किए गए चंदे पर लड़ रहे हैं? क्या मोदी की रैलियों में उमड़ी भीड़ खुद आ रही है? और इन सब से भी बड़ा सवाल कि क्या मोदी के नेतृत्व में काम करने वाले सांसद, मंत्री और राज्यों की सरकार भ्रष्टाचार मुक्त है? इन तीनों सवालों के जवाब हर देशवासी को पता हैं। केजरीवाल मोदी को उनके गढ़ याने मध्यवर्ग में ही ललकार रहे हैं। केजरीवाल बहुत सफल न भी हो पाए तो भी बीजेपी के वोट शेयर में थोड़ी डेंट भी बीजेपी को वापस 150 सीटों पर समेट सकती है। यही वजह है जिससे बौखला कर बीजेपी का पूरा प्रचार तंत्र केजरीवाल मुक्त भारत की योजना में लग गया है।
इस चुनौती से निपटने में मोदी का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट उनका बतौर मुख्यमंत्री और बीजेपी का बतौर राजनीतिक दल लंबा सियासी अनुभव है। जाहिर है दो साल की पार्टी और उसके चुनाव के वक्त पांच महीने के मुख्यमंत्री इस मामले मे मोदी के सामने कहीं नहीं ठहरते। इसके बाद अगला मुद्दा मोदी के पास विकास का है। केजरीवाल जनता के सामने विकास का अपना मॉडल पेश भी कर दे तो भी उसे जमीन पर उतारे बिना उनका दावा पुख्ता नहीं होगा। तीसरा मुद्दा मोदी के पास हिंदू राष्ट्रवाद का है। इसी मुद्दे के आधार पर उनके पास वे कमिटेड समर्थक है जो जमीन और सोशल मीडिया दोनों पर अत्यधिक मुखर है। लेकिन यही हिंदुत्व और राष्ट्रवाद मोदी के लिये नुकसानप्रद भी है। इस आधार पर बने उनके समर्थक सामाजिक-राजनीतिक रूप से अपरिपक्व है, साथ ही वे हिंदुत्व पर छाए तथाकथित खतरे से उत्तेजित होकर ऐसे काम करते हैं जिससे मोदी और बीजेपी की छवि धूमिल होती है। सोशल मीडिया में तो इन समर्थकों ने ऐसा अतिवाद मचा रखा है जिससे मोदी से जुड़ने वाले लोगों से ज्यादा उनसे विमुख हो रहे हैं। मोदी अपने को धर्मनिरपेक्ष संविधान समर्थक सिद्ध करने की जिस राह पर चल रहे थे अब उन्हे अपने कदम वापस खींचने होंगे क्योंकि धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के हिंदू वोटर जो कांग्रेस से निराश होकर उनके पाले में आ सकते थे, अब केजरीवाल की ओर सहज ही आकर्षित हो रहे है। जाहिर है अब चुनाव फिर संघ के अजेंडो पर ही लड़ा जाएगा। केजरीवाल को सीआईए का एजेंट से लेकर कश्मीर को पाकिस्तान को देने वाला सिद्ध करने का प्रयास डॉ. हर्षवर्धन विधानसभा में कर ही चुके हैं। मीडिया में भी उनके प्रवक्ता इन मुद्दों को उठा कर अपने वोट बैंक को खिसकने से रोकने के सतत प्रयास में है।
इसके बाद मोदी का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट देश के बड़े हिस्से में मौजूद सक्रिय संगठन है। इस संगठन के जरिए मोदी बड़ी संख्या में उन मतदाताओं को अपने हक में कर सकते है जो मीडिया की पहुंच से बाहर हैं। केजरीवाल को अभी अपना संगठन बनाना है और पांच महीने मे देश भर में संगठन नहीं बनाया जा सकता। कार्यकर्ताओं का झुंड जरूर खड़ा किया जा सकता है। लेकिन इस मामले में मोदी की मुसीबत यह है कि बीजेपी का पूरा संगठन भ्रष्टाचार के पैसे से ही कार्य करता है। उसके सक्रिय कार्यकर्ताओं का जनता से जुड़ाव नहीं है। संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के निस्वार्थ भाव से काम करने वाले स्वयंसेवक मोदी के प्रचार को मजबूती जरूर देते हैं, लेकिन ये हिंदुत्व आधारित प्रचार ही कर सकते हैं। केजरीवाल समर्थकों की तरह आम जनता की समस्याओं को उठाने उनके लिये संघर्ष करने का अभ्यास इन्हें नहीं है।
जो सबसे बड़ा मुद्दा मोदी के पास अब नहीं रहा वह है “बदलाव”। इसके बरक्स उन्हें अब इस बदलाव से मुकाबला करना है। कांग्रेस के सामने तो वे बदलाव का प्रतीक थे लेकिन केजरीवाल के सामने वे विश्वसनीय विकल्प से ज्यादा कुछ भी नहीं। बल्कि विधानसभा के नतीजों से तो यह नजर आता है कि वोट शेयर के मामले मे वे कहीं भी कांग्रेस को वह नुकसान नहीं पहुंचा सके जो केजरीवाल ने दिल्ली में पहुंचाया है। यानी वह बदलाव के विश्वसनीय एजेंट साबित नहीं हो पाये हैं। इसका कारण मोदी नहीं है इसका कारण जनता के सामने प्रत्यक्ष रूप से भ्रष्ट आचरण कर रहे बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता हैं। इस भ्रष्ट आचरण की वजह से ही मोदी लहर को केजरीवाल की सूनामी ने थाम दिया है। फिलहाल तो यह लड़ाई का आगाज है यह बात भी लगभग तय है कि मोदी चाहे जहां से चुनाव लड़े केजरीवाल वहीं जाकर मोदी को चुनौती देंगे। इस हाई वोल्टेज चुनावी दंगल से अगला लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी Vs केजरीवाल पर केंद्रित हो जायेगा। यह कल्पना करना मुश्किल नहीं कि आज से एक महीने बाद केजरीवाल अगर मोदी के विधानसभा क्षेत्र में जनता की समस्याओ को सुनने बैठ जाएं और वहां भारी भीड़ एकत्रित हो जाये तो सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया मे कैसी उत्तेजना की लहर दौड़ जाएगी। जाहिर सी बात है कि अब यह चुनाव मोदी के लिये “पीस ऑफ केक” नहीं रहा।
अब सवाल यह उठता है कि मोदी और बीजेपी को क्या ऐसे कदम उठाने चाहिए जो वे नहीं उठा रहे है। मेरी सलाह तो यही होगी कि सबसे पहले मोदी सभी बीजेपी शासित राज्यों की कमान परोक्ष रूप से संभाल लेनी चाहिए। भ्रष्टाचार मुक्त शासन का ढोंग रचने से होने वाला काम नहीं है। कार्यप्रणाली मे आमूल-चूल परिवर्तन जनता को नजर आना चाहिए। अगर बिना अनुभव के केजरीवाल यह काम कर सकते है तो बारह साल के मुख्यमंत्री के लिए कोई मुश्किल नही। इसके अलावा मोदी को सोशल मीडिया में सक्रिय अपने अंधभक्तों पर भी नकेल कसनी होगी। उन्हे सार्वजनिक रूप से अतिवाद से किनारा करने की बात कहनी होगी या कम से कम ऐसे अतिवादियों की कड़े शब्दो मे निंदा कर के अपने समर्थकों से अपील करनी होगी कि ऐसे लोगो का कड़ा विरोध करें। मेनस्ट्रीम मीडिया मे भी अपने प्रवक्ताओं को केजरीवाल की कार्यशैली पर तंकीद करने और हिंदुत्व के अजेंडे से दूर रखना होगा। हिंदुत्व का वोट बैंक उनका कमिटेड वोट बैंक है उसमे केजरीवाल डेंट नहीं कर सकते। लड़ाई तो उन पढ़े-लिखे मतदाताओं की है जो अतिवाद की विचारधारा पसंद नहीं करते हैं। ये तीनों काम बेहद मुश्किल है, पहला तो मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बस हैं, राहुल गांधी या केजरीवाल की तरह इकलौते नेता नहीं। ऊपर से अपनी जीत के लिए वे उन्हीं मुख्यमंत्रियों, नेताओं, कार्यकर्ताओं पर निर्भर हैं जिन पर लगाम लगाए बिना वे बीजेपी को सुधार नहीं सकते। दूसरे, हिंदुत्व के नाम से भावातिरेक होकर सोशल मीडिया मे बौखलाए घूम रहे युवकों पर लगाम लगाना लगभग असंभव है। इन्हें पूरी दुनिया मोदी, संघ और हिंदुत्व के खिलाफ़ साजिश करती नजर आती है। ऊपर से बाबा रामदेव और सुब्रमणियम स्वामी सरीखे नेता इन्हे नित नई खुराक देते रहते है। तीसरे भाजपा के नेता और प्रवक्ताओं के पास सिवाय केजरीवाल को कोसने के आज कोई मुद्दा ही नहीं है।
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आता जाएगा ये चुनाव केजरी बनाम मोदी की जंग मे तब्दील होता जाएगा। राजनीति मे एक दिन भी बहुत वक्त होता है। स्टिंग आपरेशन से लेकर सर्वे तक तमाम हथियारों को उपयोग होगा। तलवारें खिंच चुकी हैं, देश दम साधे टकटकी लगाए देख रहा है। फिसहाल पड़ला केजरीवाल का भारी है और बीजेपी मंदिरों में पूजा-अर्चना कर रही है कि “हे भगवान कैसे भी इस केजरीवाल को दिल्ली शासन में फेल कर दो तो हम सवा सौ टन लड्डू का प्रसाद चढ़ाएंगे।” http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/aruneshdave

1 thought on “भाजपा का लक्ष्य अब केजरीवाल मुक्त भारत”

  1. समय ही बतायेगा कि चुनाव किस किस के बीच होगा, क्योंकि राजनीति में समीकरण बदलते देर नहीं लगती.कभी कभी एक घटना मात्र रातों रात में पासा पलट देती है. कांग्रेस इस खेल को खेलने में माहिर है.इसलिए इस जंग को दो तक ही सीमित रख निर्णय निकलना या अपेक्षा करना जल्दबाजी होगी. केजरीवाल को कब तक पाँव टिकाये रहने देंगे,कब कहीं कोर्ट से, या केंद्र दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के नाम पर बेदखल कर दे कोई अंदाज नहीं लगा सकता. अब कांग्रेस उनसे परेशां है, व यदि उन्होंने कांग्रेस के प्रति कोई नम्र रुख नहीं किया तो कब उनका तम्बू उखाड़ कर छवि खराब कर दे, या केजरीवाल अति उत्साह में आ अब जैसी कोई भूल न कर बैठे.पता नहीं चलता.

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