क्या इतिहास अपने आप को दोहराता है ?

साधारणतय हम इतिहास को उतना ही जानते है जो हमें आठवीं और दसवीं क्लास तक पढ़ाया गया है और उससे आगे कोई इतिहास पढ़ना चाहे तो भी पढ़ सकता है और इतिहास का विशेषज्ञ बन सकता है परंतु जनसाधारण को अपने देश के इतिहास को जानने के लिए इतिहास के पन्नों को पलट कर देखना होगा ! लेकिन एक बात तो सच की भारत की धन सम्पदा और वैभव से प्रभावित होकर कितने ही आक्रमणकारियों ने इस देश को लूटने के लिए थल मार्ग से अफगानिस्तान होते हुए अपनी फौजों के साथ आक्रमण किया और जी भर कर लूटा और शासन भी किया तथा इस देश की संस्कृति और धार्मिक स्थलों को मुस्लिम पहचान में बदलने का कार्य किया तथा भारतीय धर्मावलंबियों को मुसलीम धर्म में कन्वर्ट किया !

इतना ही नहीं है इस काम में अंग्रेज, फ़्रांसिसी, पुर्तगाली भी पीछे नहीं रहे उन्होंने भी अपनी क्षमता के अनुसार समुद्री मार्ग से घुसपैठ करके जहां अंग्रेजो ने तो पुरे भारत पर कब्ज़ा किया वहीँ फ्रांसीसियों ने पांडुचेरी तो पुर्तगालियों ने गोआ पर कब्ज़ा कर लिया था ? लेकिन अब यह सब अतीत की बाते हो चुकीं है ? पर इतिहास तो इतिहास है उसको कोई कैसे झुटला सकता है । साथ ही यह भी एक कडुआ सत्य है की इतिहास की भी समकालीन घटनाओं के साथ हमेशा तुलना की जाती रही है ।

हम बात कर रहे एक बादशाह की जिसका नाम था मुहम्मद बिन तुग़लक़ जो सर्वगुण संपन्न होने बाद भी कुछ अपनी धुन का अकेला व्यक्ति था इसी कारण से इतिहासकारों ने उसे सनकी /पागल तक कहा ? इस लिए आज अगर हम अपने लोकप्रिय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की तुलना मोहम्मद बिन तुगलक से करे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ! हालाँकि की अभी 15 – 16 महीने का कार्यकाल समीक्षा के लिहाज से उचित नहीं होगा ?

मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली के तख़्त पर तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ‘जूना ख़ाँ’, मुहम्मद बिन तुग़लक़ (१३२५-१३५१ ई.) के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम ‘उलूग ख़ाँ’ था। राजामुंदरी के एक अभिलेख में मुहम्मद तुग़लक़ (जौना या जूना ख़ाँ) को दुनिया का ख़ान कहा गया है। सम्भवतः मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे ‘स्वप्नशील’, ‘पागल’ एवं ‘रक्त-पिपासु’ कहा गया है। बरनी, सरहिन्दी, निज़ामुद्दीन, बदायूंनी एवं फ़रिश्ता जैसे इतिहासकारों ने सुल्तान को अधर्मी घोषित किया गया है।

नरेंद्र दामोदरदास मोदी

17 सितम्बर 1950 को एक। साधारण पिछड़ी जाति में जन्मे मोदी का बचपन साधारण ही था ? बचपन में उन्होंने अपने पिता के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय भी बेचीं ? 17 वर्ष की आयु में जसोदा बेन चिमनलाल के साथ शादी के बंधन में बंधने के बाद भी कभी भी उस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया ऊपर विडम्बना यह की न तो कभी तालाक दिया और न रिश्ते को स्वीकार किया । उन्होंने वर्ष 2014 तक कभी भी अपने को वैवाहित घोषित नहीं किया !लेकिन लोकसभा चुनाव में वैवाहिक स्थिति की घोषणा की अनिवार्यता होने के कारन ही उनके वैवाहिक होने का राज सामने आया? क्या यह एक महिला वो भी जीवन संगिनी के प्रति उनकीक्रूरता को नहीं दर्शाता ? सबसे बड़ा सवाल तो यह है की पत्नी घोषित करने के बाद भी आज तक पत्नी का दर्जा नहीं दिया !सनकी पन का ही तो नमूना है ऐसा कृत्य ? ? वैसे तो नरेंद्र मोदी को अभी दिल्ली के तख़्त को संभाले हुए कुल जमा 15 माह से कुछ अधिक दिन हुए है ? लेकिन प्रशासनिक अनुभव की निरंतरता लगातार बानी रही क्योंकि दिल्ली की गद्दी संभालने से पूर्वे वह लगातार 13 वर्षों तक गुजरात के मुख्य मंत्री बने रहे थे ! इसलिए हम कह सकते हैं कि जहां मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने 26 वर्ष तक शासन किया वहीँ मोदी को अभी केवल 14 वर्ष ही हुए हैं और अभी शासन चल रहा है, जिस प्रकार अपने द्वारा सोंची हुई योजनाओं को को लागु करने के लिए किसी भी हद की क्रूरता तक जा सकते हैं, और स्वप्नशील योजनाओ पर दृढ़ रहते हुए सफाई अभियान । योग पर चर्चा । जनधन योजना आदि अदि लागु करने जरा भी नहि हिचकते

पद व्यवस्था

मुहम्मद बिन तुग़लक़ : सिंहासन पर बैठने के बाद तुग़लक़ ने अमीरों एवं सरदारों को विभिन्न उपाधियाँ एवं पद प्रदान किया। उसने तातार ख़ाँ को ‘बहराम ख़ाँ’ की उपाधि, मलिक क़बूल को ‘इमाद-उल-मुल्क’ की उपाधि एवं ‘वज़ीर-ए-मुमालिक’ का पद दिया था, पर कालान्तर में उसे ‘ख़ानेजहाँ’ की उपाधि के साथ गुजरात का हाक़िम बनाया गया। उसने मलिक अरूयाज को ख्वाजा जहान की उपाधि के साथ ‘शहना-ए-इमारत’ का पद, मौलाना ग़यासुद्दीन को (सुल्तान का अध्यापक) ‘कुतुलुग ख़ाँ’ की उपाधि के साथ ‘वकील-ए-दर’ की पदवी, अपने चचेरे भाई फ़िरोज शाह तुग़लक़ को ‘नायब बारबक’ का पद प्रदान किया था

प्रधानमन्त्री प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस दौरान 3 लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे देश में 437 बड़ी चुनावी रैलियाँ, 3-डी सभाएँ व चाय पर चर्चा आदि को मिलाकर कुल 5827 कार्यक्रम किये। चुनाव अभियान की शुरुआत उन्होंने 26 मार्च 2014 को मां वैष्णो देवीके आशीर्वाद के साथ जम्मू से की और समापन मंगल पाण्डे की जन्मभूमि बलिया (उत्तर प्रदेश) में किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता ने एक अद्भुत चुनाव प्रचार देखा। और इसी बलबूते पर 282 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई
: दिल्ली में प्रधान मंत्री पद की सपथ से पहले ही अपने से बड़े कद के नेताओं को किनारे लगा दिया इस फतवे के साथ की 75 वर्ष की उम्र से अधिक के सांसदों को मंत्री नहीं बनाया जायेगा । पड़ोसी देशों दे सम्बन्ध सुधरने की दिशा में सपथ ग्रहण समारोह के लिए सात पडोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलवाया । वहीँ अपने देश में विपक्ष को तकनिकी तौर पर विपक्ष की मान्यता भी नहीं दी । तमाम पुराने राज्यपालों को एक ही झटके हटा दिया । योजना आयोग को समाप्त करके एक नया आयोग निति आयोग की स्थापना की । विदेश निति में क्रांति कारी कदम उठाये और अब ता 16 महीनो में 18 देशों की यात्रायें कर डाली ।

गुणवान व्यक्ति

मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली के सभी सुल्तानों में सर्वाधिक कुशाग्र, बुद्धि सम्पन्न, धर्म-निरेपक्ष, कला-प्रेमी एवं अनुभवी सेनापति था। वह अरबी भाषा एवं फ़ारसी भाषा का विद्धान तथा खगोलशास्त्र, दर्शन, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, तर्कशास्त्र आदि में पारंगत था। अलाउद्दीन ख़िलजी की भाँति अपने शासन काल के प्रारम्भ में उसने, न तो ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृति ली और न उलेमा वर्ग का सहयोग लिया, यद्यपि बाद मे ऐसा करना पड़ा। उसने न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग का एकाधिपत्य समाप्त किया। क़ाज़ी के जिस फैसले से वह संतुष्ट नहीं होता था, उसे बदल देता था। सर्वप्रथम मुहम्मद तुग़लक़ ने ही बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर पदों का आवंटन किया। नस्ल और वर्ग-विभेद को समाप्त करके योग्यता के आधार पर अधिकारियों को नियुक्त करने की नीति अपनायी। वस्तुत: यह उस शासक का दुर्भाग्य था कि, उसकी योजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं हुई। जिसके कारण यह इतिहासकारों की आलोचना का पात्र बना।

यूँ तो नरेंद्र मोदी भी कुशाग्र बुद्धि राजनेता है धाराप्रवाह बोलते है लेकिन अंग्रेजीभाषा में हाथ कुछ तंग होने का बावजूद वह गुजराती और हिंदी में धाराप्रवाह भाषण देने में और विपक्षी को चुभती हुई बात कहने में प्रवीण हैं! यहां तक की सचिव और मुख्य सचिवों द्वारा थोडा सा भी न नुकरने पर तुरंत ही पद दे हटा ही नही देते पद। त्यागने पर मजबूर कर देते है और समनव्य के साथ कम करने वालों को पुरस्कृत भी करते है ! दो गृह सचिव , एक विदेश सचिव , DRDO के प्रमुख वैज्ञानिक, एनफोर्समेंट डायरेक्टर, विदेश सचिव, स्वच्छ भारत अभियान की प्रमुख अब तक शिकार हो चुके हैं ! सरकार के सभी प्रमुख सचिवों पर पूरा नियंत्रण के साथ साथ कोई मंत्री सार्वजानिक रूप से अपनी बात नहीं कह सकता ? केंद्र का पूरा शासन तंत्र एक क्षत्र मोदी के नियंत्रण में है ? वहीँ अपने मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपों पर किसी की नहीं सुनते ? ऐसे मंत्रियों को संरक्षण की भरपूर साथ देते हैं

दिल्ली सल्तनत

मुहम्मद तुग़लक़ के सिंहासन पर बैठते समय दिल्ली सल्तनत कुल 23 प्रांतों में बँटा थी, जिनमें मुख्य थे – दिल्ली, देवगिरि, लाहौर, मुल्तान, सरमुती, गुजरात, अवध, कन्नौज, लखनौती, बिहार, मालवा, जाजनगर (उड़ीसा), द्वारसमुद्र आदि। कश्मीर एवं बलूचिस्तान दिल्ली सल्तनत में शामिल नहीं थे। दिल्ली सल्तनत की सीमा का सर्वाधिक विस्तार इसी के शासनकाल में हुआ था। परन्तु इसकी क्रूर नीति के कारण राज्य में विद्रोह आरम्भ हो गया। जिसके फलस्वरूप दक्षिण में नए स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई और ये क्षेत्र दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए। बंगाल भी स्वतंत्र हो गया। राज्यारोहण के बाद मुहम्मद तुग़लक़ ने कुछ नवीन योजनाओं का निर्माण कर उन्हें क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया।

आदरणीय नरेंद्र मोदी ने जब दिल्ली की गद्दी पर प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला तो उस समय भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित राज्य थे जिनमे से उनकी अपनी पार्टी। के शासन के आधीन केवल 5 प्रान्त ही थे ! लेकिन मोदीजी ने कड़ी महनत और प्रचार करके तीन प्रांतों में अपनी पार्टी की सरकार बनाई इस प्रकार 8 राज्यों में अपनी पार्टी की सरकार और दो तीन राज्यों में गढ़बंधन की सरकार की स्थापना करवाई ! इसमें एक सवाल जरूर पैदा होता कि जहां तुग़लक़ के समय में राज्य की स्थापना तलवार के बल पर हुई यानी युद्ध लड़ कर राज्यों को जीता वही इस समय में भारत में लोकतान्त्रिक तरीके से सत्ता हासिल की जाती है चुनाव के द्वारा ! इस लिए संवैधानिक दृष्टिकोण से केवल चुनाव द्वारा मोदी के लिए सम्पूर्ण भारत पर शासन। करने का स्वप्न साकार होगा की नहीं बहुत मुश्किल सवाल है ? क्योकि उनकी पार्टी की दक्षिण पंथी विचार धारा ! इसके लिए सबसे बड़ी बाधा हो सकती है ? उसका कारण भी स्पष्ट है कि भारत विभिन्न धर्मावलंबियों का देश है ! जहां वर्तमान संवैधानिकप्रतिबद्धता के कारण केवल एक धर्म को थोप देना संभव ही नहीं है ?

विकास के क्षेत्र में वृद्धि

अपनी प्रथम योजना के द्वारा मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी (संभवतः 50 प्रतिशत), परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही। मुहम्मद तुग़लक़ ने कृषि के विकास के लिए ‘अमीर-ए-कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात् समाप्त कर दिया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।।

माननीय नरेंद्र मोदी के लिए विकास के कार्यों को आगे बढ़ाने में बड़ी बाधा है और उनके ड्रीम प्रोजेक्ट भूमि अधिग्रहण को तो लगभग ग्रहण ही लग चूका है संसद में बिल पास नहीं हो सका फिर भी हजारों किसानो ने आत्महत्या कर ली और विपक्ष ने भी मोदी जी की छवि को किसान विरोधी और प्रो पूंजीपति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ? स्वच्छ भारत अभियान जितनी जोर से आरम्भ हुआ था उतने ही धीरे से फ्लॉप हो चूका है ? भले ही जनधन योजना, सुकन्या योजना, का प्रचार भरपूर किया गया है परंतु धरातल पर सबकुछ पुराना ही है।

राजधानी परिवर्तन

तुग़लक़ ने अपनी दूसरी योजना के अन्तर्गत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को “कुव्वतुल इस्लाम” भी कहा गया। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरि का नाम ‘कुतुबाबाद’ रखा था और मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा राजधानी परिवर्तन के कारणों पर इतिहासकारों में बड़ा विवाद है, फिर भी निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि, देवगिरि का दिल्ली सल्तनत के मध्य स्थित होना, मंगोल आक्रमणकारियों के भय से सुरक्षित रहना, दक्षिण-भारत की सम्पन्नता की ओर खिंचाव आदि ऐसे कारण थे, जिनके कारण सुल्तान ने राजधानी परिवर्तित करने की बात सोची। मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी पूर्णतः असफल रही और उसने 1335 ई. में दौलताबाद से लोगों को दिल्ली वापस आने की अनुमति दे दी। राजधानी परिवर्तन के परिणामस्वरूप दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ, जिसने अंततः बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खोला।

श्री नरेंद्र मोदी के लिए शायद यह संभव नहीं होगा की वह अपने क्रन्तिकारी आक्रामक विचारों के बावजूद वह दिल्ली से राजधानी को कभी वह अपने हृदय प्रदेश अहमदाबाद को बना सकेंगे ! परंतु तुग़लक़ की सनकी सोंच राजधानी परिवर्तन ” दिल्ली से दौलताबाद और फिर दौलताबाद से दिल्ली ” जो पूरी तरह से फ्लॉप रहा था ? मोदी जी खाते में 15 माह के शासन में अभी तक तो केवल अवसर आया है जब हमें ऐसा लगा की भूमि अधिग्रहण कानून को संसद से पास न करा पाने के कारण अध्यादेश के द्वारा कानून को स्थापित करने में तत्परता दिखाई ? तीन बार अध्यादेश लागू करने के बाद भी हजारों किसानो की आत्महत्या और राजनीतिक दबाव के कारण अंत में विवादित कानून स्वयं ही कालातीत हो चूका है ? इसलिए तुग़लक़ के राजधानी परिवर्तन के कार्यक्रम से तुलनात्मक समीक्षा की जा सकती है ? क्योंकि विपक्ष इसे मोदी जी का यु टर्न मानते है !

SPSingh

Note मुहमद बिन तुगलग से सम्बंधित सभी सामग्री गूगल से ली गई है !

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