उम्मीद और उन्माद का द्वंद्ग

Ras Bihari Gaur (Coordinator)काल के कपाल पर हस्ताक्षर करने की त्वरा समय के सच को नकार कर अपना समय जीना चाहती है। किन्तु इन सबसे आगे बढ़कर स्वम को समय से बड़ा मानते हुए इतिहास रचने की जिद कभी- कभी इतिहास बनने की शुरुवात भी होती है। इतिहास हमे सिखाता है ,बताता है कि हमने अपना देश रूपी घरोंदा कैसे बनाया है ,बचाया है।
अभी अमेरिका से सैन्य शक्ति को लेकर कुछ समझोते हुए। राजनीती और सामरिक महत्व के बावजूद बड़े खतरों के प्रति हम या हमारा नेतृत्व लगभग प्रतिक्रिया-शून्य है। समझोते के तहत हम और अमेरिका अब एक दूसरे के सैन्य संसाधनों, ठिकानों आदि का उपयोग वैधनिक रूप से कर सकते हैं। मतलब कि एक दूसरे की छत पर चढकर अपने-अपने शत्रु से निपट सकते हैं। पांच हजार वर्षो तक वसुधैव कुटुंकम्भ और शान्ति के मसीह पैदा करने वाला देश शत्रुओं को ध्यस्त करने के लिए दुनियां के दादा को अपना मकान देने पर राजी है। हम भी उसके शत्रुओं को निपटाएंगे मानो हम बाज की उड़ान को शांति के सफेद कबूतरों से डराएंगे। अमेरिका का चरित्र एवम् ताकत से दुनियां वाकिफ है । वह भी तब जब वहाँ चुनावी दहाड़ में ट्रम्प सरीखा कट्टर स्वर एक नई दुनियां का नक्शा बना रहा हो।
कुछ समय के लिए मान ले कि इस कदम के परिणाम सुखद होंगे, किंतु प्रतिशत भर नकारात्मकता ,क्या हम सह पाएंगे? पिछली समस्त सरकारों ने यही सोचकर कदम नहीं बढ़ाए कि हर उन्नति और द्वेष से बढ़कर किसी भी देश के लिए उसकी संप्रभुता होती है। किंतु इस बार ऐसा नहीं सोचा गया या जा रहा है।कारण साफ़ है कभी संघर्ष की कोख से नेतृत्व निकलता था अब सम्मोहन के प्रसव से नेता मिल रहे हैं। कभी उम्मीद के धरातल पर लोकतन्त्र की इबारत लिखी जाती थी, अब उन्माद के उबाल से संख्याबल पैदा किया जाता है।
प्रश्न किसी दल विशेष का नहीं है,राजनैतिक चरित्र का है। जो समाज और समय के सच को अस्वीकृत करते हुए आने वाले कल को सतही स्वार्थो के ईंट गारे से गढ़ रहा है.
सम्भवतः आप सहमत ना हो। यह भी सम्भव है ये सब घटित ना हो। मैं स्वम भी यही चाहता हूँ ।इसी कामना में कि मेरा आंकलन सही ना हो.. उम्मीद और उन्माद के इस द्वंद्व से उपजी पीड़ा आपसे बाँट रहा हूँ।

रास बिहारी गौड़ www.ajmerlit.org/blogspot

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