“मोहब्बत”

रश्मि जैन
रश्मि जैन
मोहब्बत
कितना पाक अहसास है
एक बार हो जाये किसी से
तो अहसास होने लगता है
जन्नत का
ज़ज़्बात चाहिए
मोहब्बत को समझने के लिए
शब्द नही

ज़ुबाँ बोल नही पाती और
दिल है कि
सिर्फ सुनना चाहता है
दिल की असीम गहराइयों से
ही महसूस किया जा सकता है
पाक मोहब्बत को
चाहे सामने वाला कूबूल करे या ना
एक बार जिंदगी में हो गई

किसी से मोहब्बत
तो ताउम्र भुलाया नही जा सकता
इसीलिए तो कहती हूँ
‘तेरी हर रज़ा में रज़ा है मेरी
दिलबर मेरे..
जो चाहे तू दे सिला मेरी
मोहब्बत का..
वफ़ा दे या दे सज़ा
दिलबर मेरे..
जो भी देना चाहे मुझे, देना
दिल से..
याद में तेरी तड़फता है दिल
आज भी..

‘लेकिन बेबसी तो देखो
कह भी नही सकती
और चुप रह भी नही सकती’
‘दिल का क्या..
तड़फता है दिल.. मचलता है दिल..
जितना दूर जाओ उतना पास लाता है दिल..
ए दिल.. तू इस दिल की ना सुन..
कंही फिर से बहक ना जाये ये दिल’…

रश्मि डी जैन
महासचिव, आगमन साहित्यक समूह
नई दिल्ली

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