मैं दौड़ती सरपट

रोज़ की तरह आज भी घर से निकलते निकलते देर हो गई थी कॉलेज जाने को बस जो पकड़नी थी लेकिन क्या करूँ ये रोजमर्रा के काम पीछा ही नही छोड़ते।पहले तो सब को उठाने के लिए मुर्गे की तरह बांग देनी पड़ती है , फिर नवाब साहब पतिदेव को बेड टी सप्लाई करनी होती है जब जाकर साहब का आसन छूटता है इसी बीच नन्नू को भी पोटी लग पड़ती है तो उसे लेकर बाथरूम में भागो बस फिर उसे निलाह दुलहा के स्कूल के लिए तैयार कर किचन की ओर रुख करती हूँ तीनो का टिफिन और मम्मी जी पापा जी का खाना बनाना शुरू ही होता है कि मम्मी जी की आवाज आती है बहु बेटा तेरे पापा जी भी उठ गए है हमारी चाय भी बना दो साथ ही खाने को भी कुछ ले आना खाली पेट चाय जी मे उछाले मारती है सो दूसरी गैस पर चाय चढ़ा दी , पहली पर पहले से ही सब्जी चढ़ी थी तो नाश्ते के लिए पोहे न चढ़ा सकी , चाय के साथ ब्रेड ही सेक कर जेम के साथ दे आई । इतने में साहब ने बड़ी बैचेनी से पूछा ” अरे आज अखबार नही आया क्या ” मैं थोडी झल्लाई और रसोई से ही चिल्लाकर बोली ‘शायद आज उसकी धर्म पत्नी ने भी बेड टी नही दी होगी उसे ,सो आना भूल गया होगा , खैर तुम उठो तैयार हो जाओ ऑफिस को लेट हो जाओगे , आज गाड़ी भी सर्विस पर देनी है । इस बीच घड़ी पर नज़र पड़ी ” मरी ये भी सुबह सुबह बहुत तेज दौड़ती है जैसे मॉर्निंग वॉक पर निकली हो” बड़बड़ाते हुए फटाफट नन्नू का टिफिन लगाया और बेग रेडी किया बस जैसे वेन वाला भी इसी घड़ी का इंतजार कर रहा था फट से हार्न बजाता आ गया मैं निक्कू को लेकर दौड़ी उसे बैठाया और वेन रवाना हो गई , मेने भी चैन की सांस ली कि “चलो एक काम तो निपटा” अभी सांस नीचे भी न उतरी थी कि मम्मी जी का आदेश हुआ कि “बहु बेटा पूजा की तैयारी कर देना तुम्हारे पापा जी नहा लिए है ”
मुँह सिकोड़ कर अच्छा मम्मी जी कहते हुए मैं भीतर चल दी।
पूजा की तैयारी हुई थी कि पति देव बड़े प्यार से निवेदन करते हुए बोले कि ” यदि देवी जी की कृपा हो तो हमे एक कप चाय और मिल जाये।” गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उनकी आदत जानती थी जब तक दूसरी चाय नही मिलेगी साहब ऐसे ही माथा पकाते रहेंगे सो बनाने चल दी। चाय के साथ ही दोनों का टिफीन लगाने के लिए चपाती भी बनाने लगी । इधर चपाती बनी उधर चाय उबली । चाय छानकर ले गई डाइनिंग टेबल पर सोचा अब खुद भी चैन से चाय पी लेती हूँ फिर कॉलेज के लिए तैयार होऊंगी , बस सोचा ही था कि पति देव बाथरूम से चिल्लाते हुए बोले ” मेरी सफेद शर्ट पर फटाफट प्रेस कर देना आज बोर्ड मीटिंग है ‘” फिरसे गुस्सा तो आया लेकिन साहब की आदत जानती थी कि ऐसे ही बिना प्रेस की हुई शर्ट में चल देंगे सो चाय छोड़ लग गई प्रेस में।
साहब बड़ी फुर्ती से बाथरूम से बाहर निकले और बड़बड़ाते हुए तैयार होने लगे ” अरे ! मेरा रुमाल कहाँ है , मैं दौड़कर गई और अलमारी से निकालकर दिया साथ ही अपनी साड़ी भी निकाल ली इतने में देखा कि एक मोजे की जोड़ी देखने के लिए साहब ने अलमारी से ढेर सामान निकाल बाहर किया , झल्लाहट तो बहुत आई लेकिन क्या करूँ बोर्ड मीटिंग की तड़ी जो दे रखी थी जैसे तैसे साहब तैयार हुए और उन्हें गेट तक सी ऑफ करने गई , गेट पर पहुंच कर ध्यान आया कि उनका मोबाइल तो अंदर ही रह गया लेने को दौड़ी साहब को तो लेट हो रही थी ना ! लेकर लौटी तो देखा साहब गाड़ी निकालने को रेडी थे मैने जल्दी से जाकर गेट खोला और हाथ मे मोबाइल पकड़ाया और बाय करते हुए अंदर आ गई ।
भीतर आते आते सोच रही थी कि “आज बहुत लेट हो गई हुँ नाश्ते के चक्कर में रुकी तो और लेट हो जाऊंगी , केंटीन से ही कुछ मंगा लुंगी , मम्मी जी को कह देती हुँ कि वो अपनी और पापा जी की चपाती बना लेगीं ” सोचते सोचते अपना टिफिन लगाया और तैयार होने चलदी इतने में मम्मी जी आई और बड़े प्यार से बोली ” बहु बेटा आज तुम्हारे पापा जी का पेट खराब हो रहा है तो वो रोटी नही खाएंगे सो उनके लिए खीचड़ी बना दे , मेरे लिए भी खिचड़ी ही बना देना फालतू में ज्यादा मेहनत होगी।” मैं कुछ बोल तो नही पाई लेकिन मुहँ सिकोड़ते हुए मन में बोली कि ” खिचड़ी खाकर कौनसा मेरे पर एहसान करोगी ” और अनमनाते हुए रसोई में गई और लगी खीचड़ी चढ़ाने , कुकर का प्रेशर बने तब तक तैयार हो लेती हूँ सोचकर कमरे में चली गई। फटाफट से साड़ी पहनी , आईने में ढंग से देखना तो दूर जुड़ा भी ढंग से नही बना पाई , मैचिंग की बिंदी और लिपिस्टिक ढूंढने का समय नही था सो जो हाथ में आई लगा ली।
इतने में कुकर की सिटी बजी मानो जैसे कॉलेज का घण्टा बजा हो , मेने दौड़कर गैस बंद की और आकर पर्स व कॉलेज का सामान सम्भाला।
“मम्मी जी खीचड़ी तैयार है , मैं जा रही हूँ ” बाहर से ही चिल्लाते हुए बोली और निकल आई । जल्दी जल्दी बस स्टैंड की ओर चली , आदत नही थी तेज चलने की रोज़ एक्टिवा पर जाती थी लेकिन दो दिन से खराब पड़ी थी सो बस से ही जाना था, जैसे तैसे बस पकड़ी और कॉलेज पहुंच गई।
शुक्र है ईश्वर का केवल पाँच मिनिट ही लेट होई थी । “अहा बच गई” ये सोच कर बड़ी खुश हो रही थी , इतने में पीछे से बाई जी ने आवाज़ लगाई ” अरे पूनम मेम ! आपको प्रिंसिपल सर बुला रहें है ।”
ओफ्फो ! “आज क्या फरमान मिलने वाला है। ” बाई से पूछते हुए प्रिंसिपल सर के ऑफिस को चल दी।
बड़ी शिष्टता के साथ ऑफिस में एंट्री करी और एक स्माइल देते हुए बोली ” जी गुड मॉर्निंग सर , कहें क्या काम है सर ।”
सर ने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया और दिनभर का टाइम टेबल हाथों में थमा दिया और मुस्कुराते हुए बोले ” मैडम आज नेक एक्रीडेशन का इंस्पेक्शन है मुझे आप पर पूरा भरोसा है आप सब कुछ संभाल लेंगी ।”
मैं भी बडे गर्व के साथ आत्मविश्वास झलकाते हुए ऑफिस से बाहर निकली और नाश्ता भूल कर इंस्पेक्शन की गणित में लग गई ।
बाई पास आई और बड़े प्यार से बोली ” क्या बात है मेम आज आप थोड़ी ज्यादा ही थकी थकी सी लग रही हो ।”
मैं सकपकाई और अपनी झेंप मिटाते हुए बोली ” अरे नही रे पगली ऐसा कुछ नही , दरअसल ये बड़ी जिम्मेदारी का काम है सर हर किसी को तो नही दे सकते ना ! आखिर कॉलेज की इज्ज़त का सवाल है।”
कहते हुए एक पढ़ी लिखी , स्वावलंबी औरत की भांति दम्भ भरा और उसे चाय लाने भेज दिया।
उसके सामने तो अपनी झेंप मिटा ली लेकिन में मन ही मन सोचती जा रही थी कि” इतना पढ़लिख कर मैं आत्म निर्भर तो बन गई , लेकिन क्या मैं स्वतंत्र हूँ ? क्या मैं खुश हूँ ? क्या मैं आपने लिए जी रही हूँ?
इतने में इंस्पेक्शन की टीम आ गई मैं सब कुछ भुला कर एक योग्य कर्मचारी की तरह काम पर लग गई सब कुछ अच्छे से हो गया , प्रिंसिपल सर बड़े खुश थे , सारे स्टाफ के सामने बहुत तारीफ की , मैं भी बहुत खुश थी।
शाम के छह बज गए थे घर के लिए लेट हो गई थी लेकिन चिंता नही थी क्योंकि मम्मी जी को पहले ही फोन कर दिया था। बहुत थक चुकी थी इसलिए बस की बजाए घर के लिए टेक्सी कर ली ।
घर पहुँची तो नन्नू आ कर चिपक गया , उसका बेग , डायरी आदि सम्भाला , उसे दूध दिया , मम्मी जी , पापा जी और खुद के लिए चाय बनाई और रोज़ की तरह शुरू हो गई कोलू के बैल की तरह।
“आखिर हूँ तो नारी ही ना , पढ़ीलिखी हुई तो क्या ? ”
मीनाक्षी माथुर, जयपुर

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