सूर्य

हिमानी पारीक
भगवान सूर्य नारायण का महत्व वेदों, पुराणों, शास्त्रों में नाना प्रकार से वर्णित है । सनातन पंच देव उपासना में शिव, विष्णु, दुर्गा, गणेश व सूर्य की उपासना की जाती है । भगवान शिव की स्तुतियों में उन्हें ‘ वंदे सूर्य शशांक वह्नि नयन ‘ कहकर वंदना की है कि सूर्य, चंद्र तथा अग्नि आपके नेत्र है । इस प्रकार सूर्य को शिव के नेत्र स्वरूप माना गया है । भगवान राम को नारायण का अवतार कहा गया है तथा हम सभी सूर्य को सूर्य नारायण कहते हैं । अर्थात शास्त्रों में सूर्य को भगवान श्रीराम का प्रतिबिम्ब माना गया है । भगवान श्रीराम को सूर्यवंशी ही कहा गया है । सूर्य उपासना का महत्व अनेकानेक प्रकार से बताया गया है । श्रीराम और रावण के युद्ध में भी अगत्स्य मुनि ने श्रीराम को ‘ आदित्य हृदय स्तोत्र ‘ कह हृदय में धारण करने को कहा था ।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है । अनेकानेक योगों, राजयोगों का सम्बंध सूर्य से बताया गया है । हमारी जन्मकुंडली में प्रथम स्थान अर्थात लग्न का कारकत्व सूर्यदेव का बताया गया है । सम्पूर्ण कुंडली को प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हुए भी सूर्य के कुछ अति महत्वपूर्ण कारकत्व है । सूर्य हमारी आत्मा है , आत्मज्योति है । सूर्य हमारे पिता है और पिता से हमारे सम्बंध हैं । हमारे आरोग्य एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारक सूर्य है । रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं पर सूर्य का प्रभाव होता है । सूर्य सरकार को व सरकार से हमारे संबंधों को दर्शाता है । जन्मपत्री में सूर्य की स्थिति से हमारे आत्मविश्वास का भी पता चलता है । हमारे करियर व उच्चाधिकारियों से हमारे संबंधों पर भी सूर्य का प्रभाव होता है । सूर्य की जन्मपत्री में स्थिति से पद, प्रतिष्ठा, आजीविका एवं तरक्की का भी निर्धारण होता है । हमारी आत्मा के प्रकाश को सूर्य के प्रकाश का अंश भी कहा गया है क्योंकि सूर्य को प्रत्यक्ष देव भी कहा गया है । भारतीय संस्कारों में सदैव सूर्य को प्रातः अर्घ्य देने की परंपरा रही है ।
इस प्रकार सूर्य ग्रहण के भी विभिन्न प्रभावों को ऋषियों ने बताया है । सूर्यग्रहण हमें कई प्रकार से प्रभावित करता है । कुंडली में वह राशि जिस भाव में स्थित है, जिस राशि में सूर्यग्रहण हो रहा है उस भाव पर विचार करते हुए फलादेश करने चाहिए । सूर्यग्रहण के दौरान मानसिक जप व मानसिक पूजन करते हुए मंत्रसिद्धि का प्रयास किया जा सकता है । ग्रहण शुद्ध होने के पश्चात दान किया जाना उत्तम बताया गया है । प्रत्येक व्यक्ति की जन्मपत्री के अनुसार व्यक्ति को अलग-अलग प्रभाव तो मिलते ही है साथ ही साथ सूर्यग्रहण के वैश्विक प्रभाव एवं अनेक प्राकृतिक प्रभाव भी दृष्टिगोचर होते हैं ।
योग एवं प्राणायाम के क्षेत्र में भी सूर्य नमस्कार का महत्व अतुल्य बताया गया है । हठ योग एवं साधना के क्षेत्र में भी नाभि से ऊपर की ओर सूर्य नाड़ी का महत्व वर्णित किया गया है ।
इस प्रकार सूर्य का हमारे जीवन पर प्रभाव एवं महत्व वर्णनातीत है ।

*हिमानी पारीक*
अध्यापिका
रा. उ.प्रा.विद्यालय,
सूरजपुरा(श्रीनगर)अजमेर

1 thought on “सूर्य”

Comments are closed.

error: Content is protected !!