माफ कीजिए..आपकी कुर्बानी को हम भूल गए

fighter-king-mahendra-pratap-singhअलीगढ़। रात आई तो उजाले का भरम टूट गया, अब मैं समझा के ये साया भी नहीं है मेरा। शायद ये लाइनें देश की आजादी की खातिर महल के ऐशो-आराम को त्यागकर देश-विदेश की खाक छानने वाले स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप पर सटीक बैठ रही है। उन्होंने ख्वाबों में भी नहीं सोचा होगा कि जिसकी खातिर लड़े, वही भूल जाएंगे। ये विडंबना नहीं. तो और क्या है?

दरअसल, यहां की मिट्टी में कुछ ऐसी बात है कि जितनी जल्दी लोग सर आंखों पर बिठाते हैं, उससे कहीं जल्दी उतार भी देते हैं, पर कम से कम क्रांतिकारियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए।

मुरसान के राजा बहादुर घनश्याम सिंह के यहां एक दिसंबर 1886 को जन्मे राजा महेंद्र प्रताप को हाथरस के राजा हरिनारायण सिंह ने गोद लिया था। राजा साहब ने अलीगढ़ के एमएओ कालेज में तालीम हासिल की।

सरसैयद की मदद

राजा साहब के पिता घनश्याम सिंह ने सर सैयद की न केवल आर्थिक मदद की, बल्कि एक पक्का कमरा बनवाया, जिस पर आज भी राजा घनश्याम सिंह का नाम अंकित है।

देशभक्ति की भावना

राजा साहब के अंदर बचपन से देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, उनमें गोरों के खिलाफ आग पनपती गई।

आजाद हिंद फौज के संस्थापक

राजा साहब ने अफगानिस्तान में 29 अक्टूबर 1915 को आजाद हिंद सरकार का गठन किया। राजा साहब अस्थाई सरकार के राष्ट्रपति बने। जबकि गृहमंत्री ओबेदुल्ला सिंधी, विदेशमंत्री चंपक रमन पिल्लई चुने गए। इस सरकार ने आजाद हिंद फौज का गठन किया। इसमें पठान और कबाइली के छह हजार लोग भर्ती किए गए। 4 अप्रैल 1943 को रासबिहारी बोस ने जापान में फौज की जिम्मेदारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी।

जो ठान लिया, वही किया

राजा साहब जो ठान लेते थे, वही करते थें। भले ही उसमें उनका बड़े से बड़ा नुकसान ही क्यों न हो जाए। अपने साले जींद नरेश के विरोध के बावजूद कलकत्ता कांग्रेस में शामिल हुए।

महल से संसद

राजा महेंद्र प्रताप सिंह के प्रपौत्र राजा बहादुर गरुणध्वज सिंह ने कहा है कि राजा साहब 1957 में मथुरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। देश की खातिर सबकुछ न्यौछावर करने वाले राजा साहब को जो सम्मान मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाया है। या यूं कहे कि वो भी राजनीति के शिकार हो गए हैं। देश के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने बहुत कार्य किया, लेकिन सरकार उन्हें भूल चुकी है। उन्हें उस स्थान पर सम्मान नहीं मिला जिसकेवह हकदार हैं।

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