जनता का नुमाइंदा होना चाहिए स्मार्ट सिटी कारपोरेशन लिमिटेड का अध्यक्ष

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
अन्य सभी संबंधित पक्षों के अतिरिक्त जिला कलेक्टर वैभव गोयल के विशेष प्रयासों और नगर निगम मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के रुचि लेने से अब जब कि अजमेर को देशभर की तीसरी सूची में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए शामिल कर लिया गया है तो स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि आखिर इसका काम कब शुरू होगा? इसकी मॉनिटरिंग कौन करेगा? क्या इस योजना के तहत आने वाले धन का सही उपयोग भी हो पाएगा या नहीं? ये सवाल इस कारण उठते हैं क्योंकि इससे पहले अजमेर की जनता स्लम फ्री सिटी और जेएनएनयूआरएम की आवास योजना विफल होने और सीवरेज लाइन योजना की कछुआ चाल को देख चुके हैं।
असल में अजमेर के लोग यह देखने के आदी हो चुके हैं कि यहां लाख दावों और प्रयासों के बाद भी विभिन्न विभागों में तालमेल नहीं हो पाता। निगम या पीडब्ल्यूडी सड़क बनाती है और उसके तुरंत बाद अजमेर विद्युत वितरण निगम या भारत दूरसंचार निगम उसे केबल डालने के लिए खोद डालता है। यह मुद्दा न जाने कितनी बार संभागीय आयुक्त व जिला कलेक्टर के सामने और अजमेर विकास प्राधिकरण की बैठकों में उठता रहा है। हर बार यही कहा जाता है कि अब तालमेल का अभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, मगर नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही रहता है।
इसके अतिरिक्त ये भी पाया गया है कि जब जब अजमेर नगर सुधार न्यास, जो कि अब अजमेर विकास प्राधिकरण है, का मुखिया प्रशासनिक अधिकारी रहा है, विकास का काम ठप ही हुआ है। और जब भी जनता का कोई नुमाइंदा अध्यक्ष रहा है, उसने अपनी प्रतिष्ठा के लिए पूरी रुचि लेकर विकास के कार्य करवाए हैं। स्वाभाविक सी बात है कि सरकारी अधिकारियों की अजमेर के प्रति कोई रुचि नहीं होती, क्योंकि उन्हें तो केवल नौकरी करनी होती है और मात्र दो-तीन साल के लिए अजमेर आते हैं। ऐसे में यह जरूरी सा लगता है कि अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाए जाने के लिए जो अजमेर स्मार्ट सिटी कारपोरेशन लिमिटेड गठित होगा, उसका मुखिया जनता का ही कोई नुमाइंदा हो।
ज्ञातव्य है कि स्मार्ट सिटी योजना के तहत अब तक जयपुर व उदयपुर में कारपोरेशन बनाए गए हैं, जिनका जिम्मा अलग से नियुक्त सीईओ को दिया गया है। जयपुर की हालत ये है कि वहां एक साल में जा कर कंपनी गठित हुई, लेकिन धरातल पर काम ही शुरू नहीं हो पाए हैं। इसी प्रकार उदयपुर में भी कंपनी तो बनी है और रजिस्टर्ड भी हो गई है, लेकिन आठ माह में महज कुछ काम ही शुरू हो पाए हैं। समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी योजना की रफ्तार कैसी है। कदाचित इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि अभी तक ठीक से गाइड लाइन तय नहीं हो पाई होगी और संबंधित अधिकारी भी अपनी ओर से कोई अतिरिक्त रुचि नहीं ले रहे होंगे। इसके अतिरिक्त भी इस महती योजना की ठीक से मॉनिटरिंग भी अधिकारियों की बजाय जनता का ऐसा नुमाइंदा कर सकता है या कर पाएगा, जो स्थानीय कठिनाइयों, जरूरतों और संभावनाओं को बेहतर जानता होगा। अधिकारियों के भरोसे काम किस प्रकार होते हैं, इसका अनुमान तो इसी बात से लग जाता है स्मार्ट सिटी के लिए सबसे पहले घोषित तीन शहरों में अजमेर का नाम शुमार होने के बाद भी उसकी औपचारिकता में कितनी लापरवाही बरती गई। ये तो मौजूदा कलेक्टर गौरव गोयल और नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने अतिरिक्त रुचि दिखाई, अन्यथा अजमेर का नाम ताजा सूची में भी नहीं आ पाता।
लब्बोलुआब, सरकार को नीतिगत निर्णय करते हुए स्मार्ट सिटी कारपोरेशनों को जनता के प्रतिनिधियों को सौंपना चाहिए और उसकी कमेटी में स्थानीय विशेषज्ञों के साथ संबंधित विभागों के जिम्मेदार अधिकारियों को सदस्य के रूप में शामिल करना चाहिए। तभी अपेक्षित परिणाम सामने आएंगे। नहीं तो इसका हाल वही होना है, जैसा अब स्लम फ्री सिटी, जेएनएनयूआरएम आवास योजना और सीवरेज लाइन योजना का हुआ है।
-तेजवानी गिरधर
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