क्या शगुन निर्मित करना कारगर टोटका है?

मेरे एक परिचित जब भी शहर से बाहर जाते हैं अथवा किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए घर से निकलते हैं तो उनकी माता जी घर से बाहर आ कर सिर पर जल से भरा कलश लेकर खड़ी हो जाती हैं। जैसे ही मेरे परिचित अपनी कार स्टार्ट करते हैं तो उनकी माता जी उनके सामने से गुजरती हैं। ऐसा मैने कई बार देखा है।
मेरे मन में सवाल उठता है कि क्या वाकई ऐसा टोटका करने का फल मिलता है?
वस्तुत: भारतीय परंपरा में शगुन का बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जब हम किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए निकलते हैं तो शव यात्रा, झाडू़ लगाती महिला सफाई कर्मचारी, पानी का घड़ा भर कर लाती महिला आदि के सामने आने को शुभ माना जाता है। अर्थात जिस कार्य के लिए हम जा रहे हैं, उसके संपन्न होने की पूरी संभावना होती है। ठीक इसके विपरीत काली बिल्ली के रास्ता काटने, विधवा महिला, धोबी या स्वर्णकार का सामना होने सहित अन्य कई दृश्य निर्मित होने को अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे में लोग कुछ मिनट रुक कर उसके बाद में निकलते हैं। अर्थात अशुभ समय को टाला जाता है।
शुभ-अशुभ समय की बात आई तो इस पर भी चर्चा कर लेते हैं। आपको जानकारी होगी कि लोग चौघडिय़ा, दिशा शूल आदि देख कर यात्रा करते हैं। यदि शुभ चौघडिय़े में निकलने में देरी हो रही हो तो यात्रा में साथ लिया जाना वाला सामान, यथा संदूक, थैला आदि शुभ के चौघडिय़े में घर से बाहर रख देते हैं। एक तरह से यह प्रकृति को चकमा देने के समान है।
एक ओर उदाहरण देखिए। कहा जाता है कि रास्ते में अगर सामने से गधा आ जाए तो उसके बायीं हो कर गुजरना चाहिए। यह शुभ होता है। इसे भले ही सही माना जाए कि सामने से आ रहा गधा हमारे बायीं ओर से गुजरे तो इससे प्रकृति शुभ होने का संकेत दे रही है, मगर सायास गधे के बायीं ओर से गुजरना कैसे शुभ फल दायक हो सकता है?
इसी प्रकार भिन्न-भिन्न वार के दिन बाहर निकलते समय अमुक-अमुक वस्तु मुंह में रखते हैं, यथा गुड़, दही आदि। ये मान्यताएं कितनी सही हैं, इसके पीछे कौन सा विज्ञान काम करता है, इस पर अलग से बहस हो सकती है, लेकिन मेरा सवाल अलग है। वो ये कि चलो यात्रा पर निकलने के वक्त शुभ या अशुभ शगुन स्वत: निर्मित होते हैं तो इसका मतलब ये है कि प्रकृति हमें संकेत दे रही है। वहां तक ठीक है। लेकिन क्या यदि प्रकृति अपनी ओर से कोई शगुन नहीं दे रही और हम अपनी ओर से शुभ शगुन निर्मित करते हैं, क्या वाकई वह काम करता है? क्या प्रकृति की अपनी व्यवस्था में हम दखल कर सकते हैं? हो सकता है, इसका पूरा नहीं, आंशिक असर पड़ता हो। ऐसा भी हो सकता है कि चूंकि हमारे मन में धारणा है कि मेरे बाहर निकलते ही जल का कलश लिए हुए महिला सामने से आना शुभ सूचक है, इस कारण हमारे मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो, जो कि हमारे की संपन्नता में मदद करती हो।
स्थितियों अथवा दृश्य के प्रति हम कितने सतर्क हैं, इसका अनुमान इन उदाहरणों से समझ सकते हैं। आपने देखा होगा कि हमारे यहां भोजन परोसते समय पहले जल पेश किया जाता है। उसके बाद भोजन की थाली। अज्ञानतावश कोई यदि भोजन की थाली एक हाथ में व दूसरे हाथ में पानी का गिलास ले कर आए या पानी का गिलास भोजन की थाली में लाए तो इसे अपशगुन माना जाता है। ज्ञातव्य है कि हमारे यहां मान्यता है कि ऐसा मृतक के लिए किया जाता है। इसी प्रकार अगर कोई मकान की चौखट पर बैठे तो उसे वहां न बैठने को कहा जाता है, क्यों कि चौखट पर बैठने से दरिद्रता आती है। इसके विपरीत तथ्य है कि जो दरिद्र हो जाता है, जिसके पास खाने को भी नहीं होता, वह चौखट पर बैठता है।
बहरहाल, मैने विषय आपके समक्ष रखा है, विद्वान या सुधिजन ही इस विषय पर बेहतर खुलासा कर सकते हैं। आप भी अपने परिचित विद्वानों से चर्चा कीजिए और संतोषजनक जवाब मिले तो शेयर जरूर कीजिए।

-तेजवानी गिरधर
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