सांस में छिपे हैं चमत्कारिक प्रयोग

भारतीय सनातन संस्कृति में शिव स्वरोदय एक ऐसा विज्ञान है, जिसका प्रयोग हर आम-ओ-खास कर सकता है, मगर दु:खद पहलु ये है कि इसके बारे में चंद लोगों को ही जानकारी है। हालांकि विस्तार में जाने पर यह बहुत गूढ़ भी है, पूरे ब्रह्मांड का रहस्य इसमें छिपा है, जिसे योगाभ्यास करने वाला ही जान-समझ सकता है, लेकिन इसमें वर्णित अनेक तथ्य ऐसे हैं, जो न केवल आसानी से समझ में आते हैं, अपितु उनका प्रयोग भी बहुत सरल है। शास्त्रों के अनुसार यह विज्ञान मूलत: भगवान शिव व शक्ति के बीच का संवाद है, जिसमें जन कल्याण के लिए भगवान इसकी विस्तार से व्याख्या करते हैं। इस आलेख में हम आम आदमी के हितार्थ कुछ टिप्स पर चर्चा करेंगे, ताकि वह उनका लाभ ले सके।
टिप्स के वर्णन से पहले हम जरा इस विज्ञान के बारे में मोटी-मोटी जानकारी हासिल कर लें। यह तो आपके अनुभव में है ही हम अपनी नासिका छिद्रों से सांस लेते हैं और छोड़ते हैं। सांस ही प्राण वायु है। सांस हर पल चल रही है, खाते, पीते, चलते-फिरते, कुछ भी करते। स्वत: चल रही है। यहां तक सोते समय भी यह स्वत: चलती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। हम सोच भी नहीं सकते कि इसके पीछे प्रकृति का एक अनूठा विज्ञान काम कर रहा है। जरा गौर करेंगे तो पाएंगे कि कभी तो हमारे नाक के बायें छिद्र से सांस आती-जाती है तो कभी दायें छिद्र से। हमें उसके महत्व का कोई भान नहीं, मगर इसके पीछे एक गहरा रहस्य छिपा है।
बायें छिद्र से चलने वाली सांस को चंद्र स्वर कहते हैं और दायें छिद्र से चलने वाली सांस को सूर्य स्वर करते हैं। चंद्र स्वर स्त्री प्रधान है एवं इसका रंग गोरा है, यह शक्ति अर्थात पार्वती का रूप है। सूर्य स्वर पुरुष प्रधान है। इसका रंग काला है। यह शिव स्वरूप है। इड़ा नाड़ी शरीर के बाईं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दाहिनी तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर स्थित रहता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अत: दोनों ओर से श्वास निकले तो वह सुषम्ना स्वर कहलाएगा। मध्यमा स्वर क्रूर है। यह चलने पर हर काम के विघ्न आते हैं।
चंद्र स्वर में किए जाने वाले कार्य
विवाह, दान, मंदिर, जलाशय निर्माण, नया वस्त्र धारण करना, घर बनाना, आभूषण खरीदना, शांति अनुष्ठान कर्म, व्यापार, बीज बोना, दूर प्रदेशों की यात्रा, विद्यारंभ, धर्म, यज्ञ, दीक्षा, मंत्र, योग क्रिया आदि कार्य आदि चंद्र स्वर के चलते करने चाहिए। इसी प्रकार पानी, चाय, काफी आदि पेय पदार्थ पीने, पेशाब करने आदि में बांया स्वर होना चाहिए।
सूर्य स्वर में किए जाने वाले कार्य
उत्तेजना, आवेश और जोश के साथ करने पर जो कार्य ठीक होते हैं, उनमें सूर्य स्वर उत्तम कहा जाता है। अर्थात यदि हम ऐसे कार्य के लिए जा रहे हैं, जिसमें वाद-विवाद होना है, तो सूर्य स्वर जीत दिलवाता है। सूर्य स्वर में स्नान, भोजन, शौच, औषधि सेवन, विद्या, संगीत अभ्यास आदि कार्य सफल होते हैं। घुड़सवारी अथवा वाहन पर चढ़ते समय सूर्य स्वर बेहतर होता है।
सुषम्ना स्वर का महत्व
सुषुम्ना स्वर साक्षात् काल स्वरूप है। इसमें ध्यान, समाधि, प्रभु स्मरण भजन-कीर्तन आदि सार्थक होते हैं। सुषुम्ना स्वर में अच्छी बात का चिन्तन न करें अन्यथा वह बिगड़ जाएगी। इस समय यात्रा न करें, अन्यथा अनिष्ट होगा। इस समय सिर्फ भगवान का चिन्तन ही करें। सुषुम्ना नाड़ी मोक्ष प्राप्त करवाती है।
कुछ उपयोगी टिप्स
सुबह उठते वक्त जो भी स्वर चल रहा हो, उसी तरफ का पैर जमीन पर पहले रखें। इसके अतिरिक्त उसी तरफ के हाथ के दर्शन करें व हाथ को चूमें। उसके बाद दोनों हाथों को मिला कर दर्शन करें। स्नान के बाद जब भी कपड़े पहनें, तो जिस तरफ स्वर चल रहा हो, उस तरफ से कपड़े पहनना शुरू करें।
जब शरीर में अत्यधिक गर्मी महसूस करें, तब दाहिनी करवट लेट लें और बायां स्वर शुरू कर दें। इससे तत्काल शरीर ठंडक अनुभव करेगा। जब शरीर ज्यादा शीतलता महसूस करे तब बांयी करवट लेट लें, इससे दाहिना स्वर शुरू हो जाएगा और शरीर जल्दी गर्मी महसूस करेगा।
यदि किसी क्रोधी पुरुष के पास जाना है तो जो स्वर नहीं चल रहा है, उस पैर को आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए तथा अचलित स्वर की ओर उस पुरुष या महिला को लेकर बातचीत करनी चाहिए। ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति को शांत हो जाएगा। गुरु, मित्र, अधिकारी, राजा, मंत्री आदि से वाम स्वर से ही वार्ता करनी चाहिए।
सवाल ये उठता है कि यदि भोजन का समय हो गया हो और चंद्र स्वर चल रहा हो तो क्या करें? ऐसे में स्वर को बदलना ही होगा। यदि सूर्य स्वर चल रहा हो और चंद्र स्वर चलाना है तो दाहिनी करवट लेट जाना चाहिए। इसी प्रकार इसका विलोम भी किया जा सकता है। अनुलोम-विलोम के अतिरिक्त चल रहे स्वर नासिका को कुछ देर बंद करके भी स्वर बदल जा सकता है। जिस नथुने से श्वास नहीं आ रही हो, उससे दूसरे नथुने को दबाकर पहले नथुने से श्वास निकालें। इस तरह कुछ ही देर में स्वर परिवर्तित हो जाएगा। घी खाने से वाम स्वर और शहद खाने से दक्षिण स्वर चलना प्रारंभ हो जाता है।
इस विज्ञान में यात्रा के लिए कुछ उपयोगी जानकारी दी गई है। पूर्व तथा उत्तर दिशा में चन्द्र स्वर, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में सूर्य रहता है। दाहिना स्वर चलने पर पश्चिम या दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए। बायें स्वर के चलते समय पूर्व तथा उत्तर दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए। इससे यात्री को शत्रु का भय होता है और कभी-कभी तो यात्री घर वापस भी नहीं आता है। बायां या दाहिना कोई भी स्वर चल रहा हो और साथ ही सुषुम्ना भी चल रही हो तो मुख्य स्वर की तरफ वाला पांव आगे बढ़ा कर यात्रा करनी चाहिए। ऐसा करने से सफलता प्राप्त होती है।
आयु व मृत्यु के बारे में यह विज्ञान में विस्तार से जानकारी देता है। यदि किसी व्यक्ति का बायां स्वर लगातार चले और दाहिना स्वर बिलकुल न चले, तो समझना चाहिए कि उसकी मृत्यु एक माह में होगी। जिस व्यक्ति की आयु समाप्त हो गयी है उसे अरुन्धती, धु्रव, विष्णु के तीन चरण और मातृमंडल नहीं दिखायी पड़ते। जिह्वा को अरुन्धती, नाक के अग्र भाग को धु्रव, दोनों भौहें और उनके मध्य भाग को विष्णु के तीन चरण तथा आंखों के तारों को मातृमंडल कहते हैं। जिस व्यक्ति को अपनी भौहें न दिखें, उसकी मृत्यु नौ दिन में, सामान्य ध्वनि कानों से न सुनाई पड़े तो सात दिन में, आंखों का तारा न दिखे तो पांच दिन में, नासिका का अग्रभाग न दिखे तो तीन दिन में और जिह्वा न दिखे तो एक दिन में मृत्यु होती है। आंखों के कोनों को दबाने पर चमकते तेज बिन्दु यदि न दिखें, तो समझना चाहिए कि उस व्यक्ति की मृत्यु दस दिन में होगी।
ऐसा बताया गया है कि जो लोग चन्द्र नाड़ी से सांस अन्दर लेकर सूर्य नाड़ी से रेचन करते हैं और फिर सूर्य नाड़ी से सांस अन्दर लेकर चन्द्र नाड़ी से उसका रेचन करते हैं, वे दीर्घजीवी होते हैं। इसे ही अनुलोम-विलोम या नाड़ी-शोधक प्राणायाम कहा गया है।
ज्योतिषी भी इस विज्ञान का उपयोग करते हैं। प्रश्नकर्ता यदि अप्रवाहित स्वर की ओर से आकर प्रवाहित स्वर की ओर बैठ जाए और किसी रोग के सम्बन्ध में प्रश्न करे, तो मृत्यु शैया पर पड़ा व्यक्ति भी ठीक हो जाएगा। प्रश्नकर्ता सक्रिय स्वर की ओर से किसी रोग के विषय में प्रश्न करे, तो रोग किसी भी स्टेज पर क्यों न हो ठीक हो जाएगा। रोगी के बारे जानकारी चाहने वाला दूत प्रश्न करे तथा उस समय सूर्य स्वर प्रवाहित हो रहा हो, तो समझना चाहिए कि रोगी स्वस्थ हो जाएगा। परन्तु यदि उस समय चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो समझना चाहिए कि रोगी अभी और बीमार रहेगा।
वशीकरण में भी इस विज्ञान का उपयोग किया जाता है। चूंकि हमारी व्यवस्था पुरुष प्रधान है, इस कारण इसमें स्त्री को वश में करने की विधि बताई गई है। पुरुष यदि स्त्री के प्रवाहित स्वर को अपने प्रवाहित स्वर के द्वारा ग्रहण करे और पुन: उसे स्त्री के सक्रिय स्वर में दे, तो वह स्त्री सदा उसके वश में रहती है। रजस्वला होने के पांचवें दिन यदि स्त्री का चन्द्र स्वर प्रवाहित हो और पुरुष का सूर्य स्वर प्रवाहित हो, तो समागम करने से पुत्र उत्पन्न होता है।

-तेजवानी गिरधर
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