अपनी गली में कुत्ता भी शेर क्यों होता है?

एक कहावत आपने सुनी होगी- अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है। वो इसलिए कि वह खुद को अपनी गली का राजा मानता है। किसी भी अन्य कुत्ते, सूअर, बिल्ली आदि को वह प्रवेश नहीं करने देता। आसन की महत्ता हम इंसान तो जानते ही हैं, एक कुत्ता तक इसका महत्व जानता है। वह गली में निर्माणाधीन मकान के पास डाले गए बजरी के ढ़ेर पर चढ़ कर बैठता है, और यह अहसास करता है मानो किसी सिंहासन पर बैठा हो। आसन ही क्या, वह अपना साम्राज्य अर्थात क्षेत्र तक बिजली के पोल या वृक्ष पर मूत्र विसर्जन करके तय करता है। गलती से वही कुत्ता किसी अन्य गली में पहुंच जाता है तो वहां का कुत्ता उस पर हावी हो जाता है और उसे दुम दबा कर भागना पड़ता है। इसका भावार्थ ये है कि अपने लिए सुरक्षित स्थान पर हर कोई पूरी क्षमता के साथ काम कर सकता है, जबकि असुरक्षित जगह पर वही प्रतिभा सशंकित हो कर कमजोर बनी रहती है। वस्तुत: महत्ता व्यक्ति की नहीं, बल्कि स्थान की होती है।
हम देखते हैं कि जितने भी ज्योतिषी, तांत्रिक आदि हैं, वे अपने नियत स्थान पर ही अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं। बेशक कोई ज्योतिषी अपनी विद्या का उपयोग कहीं पर भी बैठ कर कर सकता है, मगर सटीक भविष्यवाणी अपने आसन पर बैठ कर ही कर पाता है। नियत समय पर तो और भी अधिक बेहतर परिणाम देता है। अर्थात स्थान के साथ समय की भी विशेष महत्ता है। अमुक समय में उसकी विद्या पूरी तरह से सक्रिय होती है। इसी प्रकार हम देखते हैं कि तांत्रिक अपने सिद्ध स्थान पर ही तंत्र के प्रयोग करते हैं। सर्वविदित है कि राजा विक्रमादित्य अपने सिंहासन पर बैठ कर ही न्याय किया करते थे।
श्रीमद्भागवत की कथा करने वाले कथावाचक इसीलिए पूजनीय हो जाते हैं, क्योंकि वे जिस आसन पर बैठ कर कथा करते हैं, उसे व्यास पीठ माना जाता है। व्यास पीठ की मर्यादाएं उच्च कोटि की होती हैं। स्थान का कितना असर पड़ता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जब किसी जिला कलेक्टर से उसके निवास स्थान पर मिलते हैं तो उसका व्यवहार कुछ भिन्न होता है, जबकि उसके चैंबर में मिलते हैं तो उसका मिजाज कुछ और होता है। वह स्थान का प्रभाव है। तांत्रिक अथवा धर्मगुरू के उनके सिद्ध स्थान पर किए जाने वाले व्यवहार और अन्य स्थान पर किए जाने वाले व्यवहार में भिन्नता आप स्पष्ट महसूस कर सकते हैं। सिद्ध स्थान उनको न केवल मर्यादा में बांधता है, अपितु वही उन्हें शक्ति प्रदान करता है। आपने देखा होगा कि कई उपासक आम जिंदगी जीते हैं, मगर उपासना स्थल पर उनकी महत्ता कई गुना बढ़ जाती है। अजमेर के निकट राजगढ़ धाम की ही बात करें। इस धाम के उपासक श्री चंपालाल जी महाराज जब अपने आसन पर बैठ कर विशेष भाव अवस्था में शराब की अनगिनत बोतलें पी जाते हैं, तो लोग दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो जाते हैं। कैसी विचित्र बात है कि वे अपने ईष्ट को तो उनकी प्रिय मदिरा अर्पित करते हैं, जबकि उसी प्रांगण में हजारों भक्तों को जीवन को नष्ट करने वाली शराब का परित्याग करने की प्रेरणा देते हैं। बताते हैं कि उस स्थान पर शराब छोडऩे का संकल्प लेने वाले बाद में कभी शराब का सेवन नहीं करते। वह उस स्थान का प्रभाव है।
स्थान की महत्ता के बारे में एक श्लोक है:-
जानामि नागेश तव प्रभावम
कण्ठस्थित गर्जसि शंकरस्य
स्थानम प्रधानम, न च बलम प्रधानम
द्वारस्थित को अपि न सिंघ:
स्थानं प्रधानम, न बलं प्रधानम।
इसका प्रसंग इस प्रकार है:-
एक बार भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर बैठ कर शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर पहुंचे। शिवजी के गले में पड़ा सर्प, गरुड़ को देख कर फूंकार मारता रहा। इस पर मन मसोस कर गरुड़ ने कहा- स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम। तेरा मेरा बैर हर कोई जानता है, लेकिन इस समय तू शिवजी के गले में है, इसलिए फूंकार मार रहा है। ये तेरे बल की नहीं, स्थान की प्रधानता है।
स्थान के महत्व को बताने वाली एक पोस्ट वाट्स ऐप पर देखी। पेश है:-
आदमी की पोजीशन,
उसके व्यवहार में स्पष्ट दिखाई देती है
सुहागरात को दुल्हन बनी गधी भी इतराती है
गरीब से गरीब आदमी भी,
जब घोड़ी चढ़ता है, दूल्हा राजा बन जाता है
कुर्सी पर बैठा, छोटा सा जज भी,
बड़े-बड़े लोगों को जेल भिजवाता है
अदना सा ट्रेफिक हवालदार हाथ के इशारे से
सड़क के चौराहे पर बड़े-बड़े लोगों की गाडिय़ां रोक देता है
बाल जब सर पर उगते हैं
तो कुंतल बन लहराते, संवारे जाते हैं
वो ही बाल जब गालों पर उगने का दुस्साहस करते हैं,
रोज-रोज शेविंग कर काट दिए जाते हैं

एक लेखक श्री मदन मोहन बाहेती ने इस स्थिति की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है:-
काजल जो लागे कहीं, तो कालिख कहलाय।
गौरी की आंखों अंजे, दूनो रूप बढ़ाय।।
बीस तीस की माखनी, दाल मिले जो आम।
पहुंची होटल मौर्या, हुए आठ सौ दाम।।
गौरी की गोदी रहे श्वान लिपट इतराय।
देख गली के कूकरे,भौंक भौंक चिल्लाय।।
रोड़ा पत्थर राह का हर कोई देय हटाय।
मंदिर में सिन्दूर लग निशदिन पूजा जाय।।

लब्बोलुआब ये कि स्थान की बड़ी महिमा है और हमें सदैव उसकी मर्यादाओं का पालन करना चाहिए। उस स्थान पर बैठे व्यक्ति को साधारण नहीं मान कर विशिष्ट समझना चाहिए।

-तेजवानी गिरधर
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