स्वाभिमानी सिन्धु वीरांगनाओं का बलिदान

Dahirsen-डा. एन.के. उपध्याय- भारत की नारी षक्ति का इतिहास प्रारंभिक काल से ही गौरवमयी रहा है। आपद्काल में इस देष की वीरांगनाओं ने घोड़े पर सवार होकर विद्युत गति से षत्रु का सामना किया और अपनी पवित्रता एवं सतीत्व की रक्षार्थ हंसते-हंसते जौहर की ज्वाला में कूद गयी। सिन्ध को नारी षक्ति ने भी अपने रणकौषल षौर्य और स्वाभिमान का परिचय दिया। महाराजा दाहरसेन जब मुहम्मद बिन फासिम के शड़यंत्र का षिकार हो नारी की छद्म करूण-रक्षा पुकार को सुनकर नारी रक्षार्थ अकेले युद्ध के मैदान से निकलने को बाध्य हुये तो अरब सैनिक उन पर टूट पड़े। उनका हाथी तीरों से घायल हो गया। षत्रु के धोखे में आकर दाहरसेन वीरगति को प्राप्त हुये।
दाहरसेन की वीरगति का समाचार सुन महारानी लाडी बाई ने धैर्य पूर्वक युद्ध की कमान सम्हाली। भारी संख्या में षत्रुओं का संहार करती रही। जब सैन्य बल एवं संख्या बल में षत्रु सेना भारी पड़ने लगी तो परिणाम जानकर लाडी बाई ने असंख्य सिंधी ललनाओं के साथ हंसते-हंसते जौहर की ज्वाला में आत्माहुति दे दी। भारत की सांस्कृतिक विरासत की द्योतक यह घटना इतिहास में प्रथम जौहर (साका) के रूप में जानी जाती है।
महारानी लाडी बाई के आत्म बलिदान के संदेष के पष्चात् सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन की वीरांगना राजकुमारियों सूर्य कुमारी और परमाल ने युद्ध का मोर्चा सम्हाला। षक्ति का धैर्यपूर्वक प्रदर्षन करते हुए, अनगिनत षत्रु सैनिकों को धूल चटाते हुए दोनों वीरांगनाये धृश्ट एवं दुश्ट चरित्र वाले अरब सेनापति मुहम्मद बिन कासिम के जाल में फंस गयी और दोनों को बन्दी बना लिया गया। सिन्धु वीरों ने सम्मान की रक्षार्थ दोनों राजकुमारियों को मुक्त कराने के लिये संघर्ष करते हुए अपना प्राणोत्सर्ग किया। षत्रु षिविर में बंदी दोनों बहिनों ने निष्चय किया कि आक्रान्ता मुहम्मद बिन कासिम का वध करने का अवसर नहीं खोयेंगी और यदि उनकी पवित्रता पर आंच आई तो दोनों अपना प्राणोत्सर्ग कर देंगी। अपनी चातुर्यपूर्ण योजना पूर्ति हेतु संकल्प बद्ध भारत की नारी स्वाभिमान की प्रतीक सूर्यकुमारी और परमाल को सेनापति कासिम ने सिन्ध विजय की भेंट स्वरूप अपने खलीफा के पास भिजवा दिया। दोनों बहिनों के अपूर्व सौन्दर्य पर मुग्ध कामान्ध खलीफा ने कहा- तुम दोनों हमें बहुत पसन्द हो, यहां सुखपूर्वक् रहो। राजकुमारियों ने उŸार दिया – आपके सेनापति ने तीन दिन तक उन्हें अपने हरम में रखकर उन्हें अपवित्र किया है और सूंघे हुए फूल के रूप में आपके पास भेजा है, जो कि आपका अपमान है। क्रोधित खलीफा ने मुहम्मद बिन कासिम को बैल की खाल में जीवित बंद करवाया।

डा. एन.के. उपध्याय
डा. एन.के. उपध्याय

दम घुटने से कासिम की मृत्यु हो गई सिन्ध के छलकपट का बदला लेने में सफल राजकुमारियों ने उत्साहित हो अरब आक्रमणों के सूत्रधार खलीफा को मौत के घाट उतार दिया एवं दोनों ने एक दूसरे पर प्रहार कर आत्मोत्सर्ग कर लिया। कुछ इतिहासविज्ञ इस घटना को अनैतिहासिक बताते हैं लेकिन लोक साहित्य में वर्णित आज भी यह जीवित इतिहास के रूप में उपलब्ध है।
कश्ट के समय रोते रहने एवं अपना धैर्य व विवेक खो देने के स्थान पर स्वाभिमानी सिंधु वीरांगनाओं ने जिस साहस, धैर्य और षक्ति का परिचय दिया वह इतिहास का स्वर्णिम पृश्ठ बन गया।

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