बाबा रामदेव – राजस्थान के लोक देवता – Part – 3

रामदेवजी के चमत्कार—पर्चे

dr. j k garg
dr. j k garg
पीरों के पीर रामदेवजी
बाबा रामदेवजी ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधि लेने के बाद भी अनेकों चमत्कार दिखाए जिन्हें स्थानीय बोली के अन्दर परचा देना कहते है। इतिहास, लोक कथाओं एवं किद्वंतियों में बाबा द्वारा दिए गये सैकड़ों परचों का जिक्र | जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने वहां के प्रमुख पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलौकिक चमत्कारों के बारे में बताया तो वे पीर भी बाबारामदेवजी की शक्ति और चमत्कारों को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए। बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों (बर्तन) में खाते है | अपने मेहमानों की शर्त को सुनकर रामदेवजी ने कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार कर दिखाया तुरंत ही जो सीपीयें जिस पीर कि थी वो उन पीरों के सम्मुख रखी मिली। । जब पीरों ने पाँचों कटोरे मक्का वाले देखे तो पाँचों पीरों को श्री रामदेव जी महानता पर विश्वास हुआ और कहने लगे हम पीर हैं मगर आप महान पीर हैं। आज से आपको दुनिया रामापीर के नाम से जानेगी। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्री रामदेवजी को पीर की पदवी मिली और रामसापीर, रामापीर कहलाए।

बोहिता को परचा व परचा बाबड़ी

सेठ बोहिताराज से रामदेवजी ने वादा किया कि जब कभी तुम पर कोई संकट आयेगा तब मैं आपकी मदद करूगां | सेठ बोहित्राज ने विदेश में अपार सम्पदा अर्जित की एवं सेठ जी रामदेवजी के लिये हीरों का बहुमूल्य हार खरीदा और नौकरों को आदेश दिया कि सारे हीरा पन्ना जेवरात सब कुछ नाव में भर दो इतने में ही समुद्र में जोर का तुफान आने लगा, नाव चलाने वाला नाविक सेठजी से बोला कि तुफान बहुत भयंकर है नाव का परदा भी फट गया है। अब नाव आगे चल नहीं सकती नाव तो डूबेगी ही। सेठ बोहिताराज अधीर हो गये और अपने सारे देवी देवताओं से संकट से बचाने की प्राथनाएं की किन्तु किसी ने भी मदद नहीं की, अंत सेठजी को श्री रामदेवजी के वचन याद आये और सेठ रामदेवजी को करूणा भरी आवाज से पुकारने लगा। उधर श्री रामदेवजी रूणिचा में अपने भाई विरमदेव जी के साथ बैठे थे और उन्होंने बोहिताराज की पुकार सुनी। भगवान रामदेव जी ने अपनी भुजा पसारी और बोहिताराज सेठ की जो नाव डूब रही थी उसको किनारे ले लिया। यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ कि पास में बैठे भई वीरमदेव को भी पता तक नहीं पड़ने दिया। रामदेव जी के हाथ समुद्र के पानी से भीग गए थे। सेठ बोहिताराज अपनी नाव को सही सलामत किनारे पर पाकर खुशी से झूम उठा और बोला कि जिसकी रक्षा करने वाले भगवान श्री रामदेवजी है उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता। गांव पहुंचकर सेठ ने सारी बात गांव वालों को बतायी। सेठ दरबार में जाकर श्री रामदेव जी से मिला और कहने लगा कि मैं माया देखकर आपको भूल गया था मेरे मन में लालच आ गया था। मुझे क्षमा करें और आदेश करें कि मैं इस माया को कहाँ खर्च करूँ। तब श्री रामदेव जी ने कहा कि तुम रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो और उस बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व इसका जल गंगा के समान पवित्र होगा। इस प्रकार रामदेवरा (रूणिचा) मे आज भी यह परचा बावड़ी बनी हुयी है।

दलितों-गरीबों के मसीहा—बाबा रामदेवजी

बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर जीवन पर्यन्त गरीबों, दलितों, असाध्य बीमारियों से पीड़ित रोगियों व जरुरत मंदों की सहायता और सेवा की। बाबा रामदेव ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की खूब सेवा भी की। दलित कन्या डाली बाई को रामदेवजी ने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया था। इसीलिये 660 से अधिक सालों के बाद भी असंख्य दलित समुदाय के लोग बाबा के अनन्य भक्त हैं । रामदेवजी ने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त कराया। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ “मारवाड़ रा परगना री विगत” में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है- भैरव राक्षस ने पोकरण नगर में अपने आतंक से आतंकित कर था जिसके फलस्वरूप अधिकांस नागरिक वहां से पलायन कर गये थे लेकिन बाबा रामदेव के अदभूत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया।

बाबा रामदेवजी का जीवित समाधी लेना

संवत् 1442 को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुजुर्गों को प्रणाम किया, सभी उपस्थित भक्तों पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा “प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा” ऐसा कहकर रामदेवजी महाराज ने समाधी ले ली।

प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग
सन्दर्भ——गूगलसर्च,विकीपीडिया ,मेरी डायरी के पन्ने,विभिन्न पत्र पत्रिकायें आदि
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