………‘विदाई’ एक महान साहित्यकार और सच्चे इंसान की

गोपालदास ‘नीरज’ (4 जनवरी 1925 – 19 जुलाई 2018)

-संजय सक्सेना, लखनऊ-
हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फिल्मों के गीत लेखक गोपाल दास नीरज का जाना साहित्य प्रेमियों के लिये अपूरणीय क्षति है। कई विद्याओं के धनी नीरज जी का कवि मन हमेशा कुछ न कुछ नया करने को मचलता रहता था। वह जिस माहौल में जाते वहां जुड़ जाते और उनकी लेखनी चल पड़ती। नीरज जीे पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने पद्म श्री और उसके बाद पद्म भूषण से भी सम्मानति किया था। नीरज जी के जीवन का एक काल खंड मुम्बई में भी गुजरा। उन्होंने कई फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन किया और उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। नीरज शब्द बुनते थे ओर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकार उन्हें संगीतबद्ध करके ‘अमर’ बना देते थे,यही वजह थी जब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकार इस दुनिया से विदा हुए तो नीरज ने भी मुम्बई को अलविदा कहकर मंच की दुनिया से अपना नाता जोड़ लिया।
गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है, में इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये। 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।
मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को मुम्बई( तब के बम्बई) के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फिल्म में उनका लिखा गीत ’ कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ’देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा।’ बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फिल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।नीरज ने समाज के लिये तो लिखा ही अपने ऊपर भी तंज कसने में उन्होंने गुरेज नहीं किया। अपने बारे में उनका शेर, ’इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।’ और ‘न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में।’ मंचों पर खूब सुर्खिंया बटोरते रहते थे।
नीरज बस इतने भर नहीं थे. वो दार्शनिक बनकर, एक बंजारे, सूफी या कलन्दर की तरह कुछ ऐसा रचते, जो होश उड़ा देते थे, ’ए भाई जरा देखके चलो,’ ’दिल आज शायर है, गम आज नगमा है,’ ’सूनी-सूनी सांस के सितार पर’ और ‘काल का पहिया, घूमे भैया भरपूर’ उनके दार्शनिकता को दर्शाता था , लबालब छलकता प्रेम, भावुकता में बहते निराले बिम्ब, दर्द को रागिनी बना देने की उनकी कैफियत ने उन्हें हिन्दी पट्टी के अन्य गीतकारों पं नरेंद्र शर्मा, गोपाल सिंह नेपाली, भरत व्यास, इंदीवर, राजेन्द्र कृष्ण और योगेश से बिल्कुल अलग उनकी अपनी बनाई लीक में अनूठे ढंग से स्थापित किया। पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास ’नीरज’ ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे अन्तिम सांस ली। उनके पार्थिव शरीर को लेकर परिवार में विवाद हुआ तो योगी सरकार ने राजकीय सम्मान से उनकी अंत्येष्टि कराई।
पेंशन रूकने से आर्थिक संकट से भी जूझे
नीरज जी के कई नेताओं से अच्छे संबंध थे,लेकिन उन्होंने इसे कभी भुनाया नहीं। यही वजह थी उनकी आर्थिक स्थिति कभी भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं रही। समाजवादी सरकार में सीएम अखिलेश यादव ने यश भारती पेंशन की घोषणा की थी,जिसमें अन्य कवियों के साथ नीरज जी को भी 50 हजार रूपया महीना पेंशन मिलती थी,जिससे नीरज जी को काफी राहत मिली,लेकिन योगी सरकार ने आते ही इसे रोक दिया। दुखी मन से नीरज जी नेे सरकार और संगठन का दरवाजा खटखटाया। नीरज ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पांच कालिदास मार्ग स्थित उनके सरकारी आवास पर जाकर मुलाकात की जबकि, भाजपा मुख्यालय में वह प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल से भी मिलने पहुंचे। करीब 93 वर्षीय नीरज ने पेंशन के लिए सत्ता के दर तक पहुंचकर एक नया राग छेड़ दिया,लेकिन उनकी आवाज पर जब योगी सरकार एक्शन में आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
नीरज का अटल कनेक्शन
गोपाल दास नीरज कानपुर में जिस डीएवी कालेज में पढ़े और नौकरी की, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी पढ़े। जब अटल जी देश के प्रधानमंत्री बने तो नीरज यह बात फख्र से लोगों को बताया करते थे। समाजवादी पार्टी से नजदीकी और उनकी सरकार में राजभाषा संस्था का अध्यक्ष बनाए गए नीरज के संबंध राज्यपाल राम नाईक से भी रहे, लेकिन यश भारती पेंशन रोक दिए जाने पर वह योगी सरकार के फैसले के विरोध में भी आ गए।
नीरज कहा करते थे कि उनकी कुंडली और अटल बिहारी वाजपेयी की कुंडली में बहुत मामूली अंतर है। इसी अंतर ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया है। अटल बिहारी नीरज के सीनियर थे। बाद में वाजपेयी ने देश की राजनीति में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। इधर नीरज को समाजवादी पार्टी की सरकार ने पद और सम्मान से नवाजा। लेकिन नीरज ने स्वयं को पहले साहित्यकार माना।
नीरज की प्रमुख कृतिया-
‘दर्द दिया है’ (1956), ’आसावरी’ (1963), ’मुक्तकी’ (1958), ’कारवां गुजर गया’ 1964, ’लिख-लिख भेजत पाती’ (पत्र संकलन), पंत-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं।
भले ही आज गोपालदास नीरज हम सब के बीच न हो लेकिन उनके लिखे गीत बेहद लोकप्रिय रहे. साहित्य की दुनिया ही नहीं बल्कि हिन्दी फिल्मों में भी उनके गीतों ने खूब धूम मचाई। 1970 के दशक में लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
नीरज के पुरस्कृत गीत-
– काल का पहिया घूमे रे भइया! (वर्ष 1970, फिल्म चंदा और बिजली)

– बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (वर्ष 1971, फिल्म पहचान)

– ए भाई! जरा देख के चलो (वर्ष 1972, फिल्म मेरा नाम जोकर)

– हरी ओम हरी ओम (1972, फिल्म- यार मेरा)

– पैसे की पहचान यहां (1970, फिल्म- पहचान)

– शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब (1970, फिल्म- प्रेम पुजारी)

– जलूं मैं जले मेरा दिल (1972, फिल्म- छुपा रुस्तम)

– दिल आज शायर है (1971, फिल्म- गैम्बलर )

सबसे चर्चित- कारवाँ गुजर गया
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि जिन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाखशाख जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए, छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ जमीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नजर उठा,
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटे-लुटे, वक्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर, शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे, नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफन, पड़े मजार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे!
माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी जहर भरी, गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी,
और हम अजान से, दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे।

– गोपालदास नीरज

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