नेहरु को उनकी 130 वीं जन्म जयंती पर क्रतज्ञ राष्ट्र के नागरिकों की और से श्रद्धा सुमन पार्ट 2

dr. j k garg
रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब मोडर्न मेकर्स आफ इंडिया में लिखा है “ नेहरू जहाँ धर्मविरक्त थे, वहीं गांधी अपने विश्वासों के अनुरूप ईश्वर पर आस्था रखते थे | नेहरू भारत की पारंपरिक गरीबी से मुक्ति पाने के लिए औद्योगीकरण को ही एकमात्र विकल्प मानते थे, जबकि गांधी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के पक्षधर थे| जहाँ नेहरू आधुनिक सरकारों में सामाजिकव्यवस्था को सुधारने और गतिशील बनाने की क्षमता में पूरा यकीन करते थे वहीं दुसरी तरफ गांधी राजतंत्र को शंका की नजर से देखते थे, उनका विश्वास व्यक्तियों और ग्राम समुदायों के विवेक पर केंद्रित | इन असहमतियों के साथ दोनों के बीच बुनियादी सहमतियां भी थीं, दोनों व्यापक अर्थ में देशभक्त थे, जिन्होंने किसी जाति,भाषा,क्षेत्र,धर्म या कि किसी भी तरह अधिनायकवादी सरकार के साथ होने के बजाय अपने को पूरे देश के साथ एकाकार कर लिया था | दोनों हिंसा और आधिनायकवाद नापसंद करते थे | दोनों अधिनायकवादी सरकारों की तुलना में लोकतंत्रात्मक सरकारों को पसंद करते थे” |
जन जन के नायक नेहरू जी ने भारत मे अनेकों शक्तिशाली संस्थाओं की स्थापना कि जिनसे देश के अन्दर प्रजातांत्रिक व्यवस्था मजबूत और स्थाई हो सके, इन संस्थाओं में लोकसभा, विधानसभा, स्वतंत्र एवं निक्ष्पक्ष न्यायालय और गतिशील कार्यपालिका आदि | नेहरूजी ने पूंजीवाद और कट्टर साम्यवाद के स्थान पर मिश्रित अर्थ व्यवस्था को अपनाया | अपनी समाजवादी अवधारणा को स्पष्ट करते हुए नेहरू लिखते हैं“मैं समाज से व्यक्ति संपदा और मुनाफे की भावना खत्म करना चाहता हूं | मैं प्रतिस्पर्द्धा की जगह समाज और सहयोग की भावना स्थापित करने का समर्थक हूं| मैं व्यक्तिगत मुनाफे के लिए नहीं,उपयोग के लिए उत्पादन चाहता हूं|मैं यह बात विश्वासपूर्वक कहता हूं कि दुनिया और भारत की समस्याओं का अंत समाजवाद से ही हो सकता है, मैं इस शब्द को किसी अस्पष्ट समाजवादी की तरह नहीं समाज-वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री की तरह काम में लेता हूं |

डा. जे. के. गर्ग

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