श्रीकृष्ण से ऐसे किए 16 हजार 108 विवाह

आम जनमानस में यह अंकित है कि भगवान श्रीकृष्ण के 16 हजार 108 रानियां थीं, मगर कई लोगों को इसका पता नहीं कि उन्होंने इतनी शादियां कैसे कीं?
जानकारी के अनुसार भौमासुर के कारागार में सोलह हजार एक सौ राजकुमारियां कैद थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने भौमासुर का वध करके उसकी कैद से राजकुमारियों को छुड़ाया। उन सुंदर युवतियों की इच्छा अनुसार वे उन्हें अपने साथ ले आये। एक ही मुहूर्त में विभिन्न भवनों में ठहराई गईं उन युवतियों के साथ अपनी माया से उतने ही रूप धारण करके भगवान श्रीकृष्ण ने उन सबका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया।
अन्य रानियों का विवरण ये बताया जाता है:-
सत्राजित नाम से प्रसिद्ध यादव को साक्षात भगवान सूर्य ने स्यमन्तक मणि दे रखी थी। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन के लिए वह मणि मांगी। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को अपने गले में बांध कर सिन्धुदेषीय अश्व पर आरुढ़ होकर शिकार खेलने के लिए वन में विचरने लगा। वहां एक सिंह ने प्रसेन को मार डाला। उस सिंह को जाम्बवंत ने मारा और उस मणि को लेकर अपनी गुफा में चला गया। इस पर सत्राजित ने दुष्प्रचार किया कि श्रीकृष्ण ने उसके भाई प्रसेन का वध कर मणि छीन ली। इस कलंक से मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण वन में गए। वहां उन्होंने घोड़े सहित मरे हुए प्रसेन और सिंह के शव को पड़ा देखा। पद चिन्ह से पता लगाते हुए वे जाम्बवंत की गुफा में गए। वहां उन्होंने देखा कि उसकी पुत्री उस मणि से खेल रही है। उन्होंने उससे मणि देने को कहा तो उसने अपने पिता को पुकारा। जाम्बवंत दौड़े दौड़े आए। श्रीकृष्ण ने मणि ले जाने की जिद की तो जाम्बवंत ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच 28 दिन तक युद्ध हुआ। जाम्बवंत हार गया। उसने कहा कि उसे हराने की शक्ति भगवान राम के अतिरिक्त किसी में नहीं है और पूछा कि आप कौन हो? भगवान श्रीकृष्ण ने अपना परिचय दिया। साथ ही भगवान राम के रूप के दर्शन कराए। इस पर जाम्बवंत नतमस्तक हो गया। उसने कहा कि भगवान राम ने त्रेता युग में उससे द्वापर युग में मिलने का वचन दिया था। वह मुक्ति के लिए उनका ही इंतजार कर रहा था। ऐसा कह कर उसने अपनी पुत्री जाम्बवंती का हाथ श्रीकृष्ण में हाथ में दे दिया। भगवान मणि के साथ उसे लेकर द्वारिका पहुंचे। उधर सत्राजित को अपने कृत्य पर बड़ी आत्म ग्लानि हुई और यादव परिवार में शांति रखने के लिए अपनी पुत्री सत्यभामा तथा उस मणि को भी भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया।
इसी प्रकार एक बार भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की सहायता के लिए इन्द्रप्रस्थ गये। वे अर्जुन के साथ यमुना के किनाने आखेट करने गए। वहां कालिन्दी देवी भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा से तपस्या कर रही थीं। भगवान उन्हें साथ लेकर इन्द्रप्रस्थ आये और वहां से द्वारका में पहुंच कर कालिन्दी के साथ विवाह किया।
अन्य प्रकरण के अनुसर अवन्ती के नरेश की मित्रविंदा नाम एक सुंदर पुत्री थी। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी की ही भांति मित्रविन्दा को भी स्वयंवर से हर कर लाये। इसी प्रकार राजा नग्नजित के सत्य नामक पुत्री थी। राजा ने यह प्रतिज्ञा की थी कि सात सांडों को जो एक साथ नाथ देगा, उसी वीर के साथ पुत्री का विवाह करूंगा। भगवान श्रीकृष्ण ने सातों सांडों को नाथ कर सत्य के साथ विवाह किया। केकयराज कुमारी भद्रा को भगवान उसकी इच्छा के अनुसार अपने घर ले आये। राजा बश्हत्सेन के लक्ष्मणा नामक पुत्री थी। राजा ने स्वयंवर में मत्स्य वेध की शर्त रखी गयी थी। भगवान ने मत्स्य का भेदन कर लक्ष्मणा का हाथ थामा।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की सोलह हजार एक सौ आठ रानियां थीं। प्रत्येक ने श्रीकृष्ण के दस-दस पुत्र उत्पन्न किये।

-तेजवानी गिरधर
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