गणेश चतुर्थी — गणपति का जन्मोत्सव मैनेजमेंट के सर्वोच्च गुरु देवों के देव गणेश part 3

j k garg
गणेश में गण का अर्थ है “वर्ग और समूह”और ईश का अर्थ है “स्वामी” अर्थात जो समस्त जीव जगत के ईश हैं वहीं देवों के देव भगवान गणेश ही है | इसलिए उन्हें गणाध्यक्ष, लोकनायक गणपति के नाम से भी जाना जाता है | गणेशजी की चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। शिव मानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर “(ॐ ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है)। विघ्नहर्ता गणेशजी की व्याख्या करने से स्पष्ट होता है कि गज दो व्यंजनों से यानि ग एवं ज से बना हैं, यहाँ अक्षर ज जन्म और उद्दगम का परिचायक है वहीं ग गति और गन्तव्य का प्रतीक है | निसंदेह हमें गज से जीवन की उत्पति और अंत का संदेश मिलता है यानि हमारे नश्वर शरीर को जहाँ से आया है वहीं पर वापस जाना है | निसंदेह जहाँ जन्म है वहां म्रत्यु भी है | सच्चाई तो यही है कि विनायक गणेशजी के शरीर की शारीरिक रचना के भीतर भोले शंकर शिवजी की सूक्ष्म सोच निहित है, भगवान शिव ने गणेशजी के अंदर न्यायप्रिय,योग्य, कुशल एवं सशक्त शासक के समस्त गुणों के साथ उनमें देवों के सम्पूर्ण गुण भी समाहित किये हैं |

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