दीपावली कार्तिक अमावस्या को ही क्यों मनाई जाती है? part1

dr. j k garg
कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाने के बारे में अनेकों मान्यता एवं कथाएं प्रचलित है | राकक्षराज अहंकारी सोने की लंका के स्वामी रावण का वध करने के बाद अयोध्या वापस लोटें तो वहां के नर-नारीयों ने समूचे राज्य को दीपों की रोशनी से जगमगा दिया और राम सीता लक्ष्मण के आगमन पर खुशी प्रकट करने हेतु आतिशबाजी कर पटाखे जलाये, तभी से भारत भूखंड में कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाई जाती है। यह भी माना जाता है कि कार्तिक महीने की अमावस्या को ही राक्षस और देवताओं द्वारा समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी क्षीर सागर से ब्रह्माण्ड में अवतरित हुई थी। इसी वजह से कार्तिक महीने की अमावस्या को माता लक्ष्मी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिवाली के त्यौहार के रूप में मनाना शुरू किया था | अत्याचारी राक्षसराज नरकासुर ने अपने कारागार के अंदर सोलह हजार औरतों को बंदी बना रखा था। भगवान कृष्ण ने कार्तिक महीने की चतुर्दशी को नरकासुर को मार कर समस्त महिलाओं को मुक्त करवा के उनकी जान बचाई थी इसलिए दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को इस घटना को उत्सव के रूप में मनाया जाता है ।महाभारत के अनुसार 12 वर्ष के निष्कासन एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद कार्तिक महीने की अमावस्या को पांडव राज्य में सकुशल लौटे थे। पांडवों के वापस लौटने से वहां के लोग बहुत खुश थे, उन्होंने मिट्टी के दीपक जलाकर और पटाखे जलाकर पांडवों के लौटने दिन को मनाना शुरू कर दिया। बहुत समय पहले एक राक्षस था जिसने लड़ाई में सभी देवताओं को पराजित किया और सारी पृथ्वी और स्वर्ग को अपने अधिकार में ले लिया। तब माँ काली ने देवताओं, स्वर्ग और पृथ्वी को बचाने के उद्देश्य से देवी दुर्गा के माथे से जन्म लिया था। राक्षसों की हत्या के बाद उन्होंने अपना नियंत्रण खो दिया और जो भी उनके सामने आया उन्होंने हर किसी की हत्या करनी शुरू कर दी। अंत में माता काली को उनके रास्ते में भगवान शिव के हस्तक्षेप द्वारा रोका गया। देश के कुछ भागों में, उस पल को यादगार बनाने के लिए उसी समय से ही यह दिवाली पर देवी काली की पूजा करके मनाया जाता है।राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी कार्तिक अमावस्या को हुआ था तबसे लोगों ने दिवाली को ऐतिहासिक पर्व के रुप से मनाना शुरु कर दिया था। बौबौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने आज के लगभग2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में ने दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। जैन धर्म को मानने वालों के मुताबिक कल्पसूत्र के अंदर बताया गया है कि महावीर के निर्वाण के साथ जो अंतरज्योति सदा के लिए बुझ गई है|

Dr J.K.Garg

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