अपरा एकादशी व्रत आज

प्रेत योनि की बाधा से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है अपरा एकादशी व्रत

राजेन्द्र गुप्ता
हिंदू धर्म में सभी व्रतों में से एकादशी का व्रत सबसे कठिन है। हर माह के दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत आता है। ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल अपरा एकादशी 26 मई के दिन पड़ रही है। इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं और भगवान श्री हरि प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ज्येष्ठ माह में भगवान विष्णु की पूजा को बहुत शुभ और विशेष फलदायी माना गया है।

अपरा एकादशी व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
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ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी की तिथि 25 मई, बुधवार सुबह 10 बजकर 32 से आरंभ होगी और 26 मई 2022, गुरुवार सुबह 10 बजकर 54 मिनट पर तिथि का समापन होगा।

उदयातिथि के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत 26 मई के दिन रखा जाएगा। व्रत के पारण का समय 27 मई शुक्रवार प्रातः 05 बजकर 30 मिनट से लेकर 08 बजकर 05 मिनट तक है।

अपरा एकादशी व्रत का महत्व
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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से व्यक्ति प्रेतयोनि से मुक्ति पाता है। वहीं, इसे मोक्षदायनी भी कहा जाता है। इस व्रत रखने से मृत्यु के बाद व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति को अपार पुण्य लाभ मिलता है। जीवन में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है और धन, वैभव और आरोग्य प्राप्त होता है।

अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा
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युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।

यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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