विनायक चतुर्थी व्रत आज

राजेन्द्र गुप्ता
आषाढ़ माह को साल का चौथा माह कहा जाता है। इस माह कई व्रत-त्योहार पड़ते हैं। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। विनायक चतुर्थी पर विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है।

शास्त्रों में आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी के महत्व के बारे में बताया गया है। इस माह में पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा करने और व्रत रखने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। लेकिन पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ें तभी पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है। इसलिए पूजा के समय विनायक चतुर्थी की कथा पढ़नी या सुननी चाहिए।

विनायक चतुर्थी तिथि व मुहूर्त
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चतुर्थी तिथि प्रांरभ- शनिवार 2 जुलाई 2022 दोपहर 03:16 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त- रविवार, 3 जुलाई शाम 05:06 तक
व्रत व पूजन का शुभ मुहूर्त- 3 जुलाई सुबह 11:02 से 01:49 तक

गणेश जी की पूजा विधि
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जो लोग 03 जुलाई को विनायक चतुर्थी व्रत रखने वाले हैं। वे प्रातः स्नान करके चतुर्थी व्रत और पूजन करने का संकल्प लें। इसके बाद शुभ मुहूर्त में गणपति बप्पा की पूजा करें। इस दिन सबसे पहले गणेश जी को एक चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद उनका जलाभिषेक करें। फिर उनको वस्त्र, चंदन, तिलक, कुमकुम, धूप, दीप, लाल फूल, अक्षत, पान सुपारी, आदि अर्पित करें।

गणेश जी की पूजा में दूर्वा का उपयोग जरूर करना चाहिए। क्योंकि यह गणेश जी को अत्यंत ही प्रिय होती है। भोग के रूप में मोतीचूर के लड्डू चढ़ाएं। इसके बाद गणेश चालीसा और विनायक चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें। गणेश जी आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करेंगे।

विनायक चतुर्थी कथा
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वैसे तो भगवान गणेश की चतुर्थी से जुड़ी चार कथाएं है। लेकिन विनायक चतुर्थी से जुड़ी सबसे प्रचलित और पौराणिक कथा के अनुसार, नर्मदा नदी के तट पर माता पार्वती और भगवान शिव बैठे थे। समय व्यतीत करने के लिए माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेल का आनंद लेने की बात कही। लेकिन समस्या यह थी कि खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा। निर्णायक की भूमिका के शिवजी एक मिट्टी पुतला बनाकर उसमें प्राण डाल दिए। शिवजी ने उसे आदेश दिया कि, हम चौपाल खेल रहे हैं तुम विजेता का फैसला करना और इसके बाद शिव-पार्वती खेल का आनंद लेने लगे। शिव-पार्वती के बीच तीन बार चौपाल का खेल हुआ, जिसमें मां पार्वती की जीत हुई। जब बालक को विजेता घोषित करने की आज्ञा दी गई तो उसने शिवजी विजेता बताया। माता पार्वती बालक के फैसले पर रुष्ट व क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को श्राप दे दिया।

बालक को अपनी गलती का आभास हुआ और उसने माता पार्वती से क्षमा मांगी। तब माता पार्वती ने कहा कि श्राप वापस नहीं होगा। लेकिन माता ने बालक को श्राप मुक्ति के उपाय बताए। माता ने बालक से कहा कि, श्रीगणेश की पूजा के लिए यहां नागकन्याएं आएंगी। तुम उनके कहे अनुसार व्रत करना, जिससे तुम श्राप मुक्त हो जाओगे।

एक वर्ष बाद वहां नागकन्याएं आईं। बालक ने नागकन्याओं से व्रत विधि के बारे पूछा और 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत व पूजन किया। भगवान गणेश बालक की निष्ठा और श्रद्धा से प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा। तब बालक ने कहा-‘हे विनायक! मुझे माता पार्वती के श्राप से मुक्त कर दीजिए। भगवान गणेश के आशीर्वाद से बालक श्राप मुक्त हो गया।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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