क्या अंतर्ध्यान, अदृश्य या गायब होना संभव है?

अंतर्ध्यान शब्द के मायने है, अदृश्य होना। इसका उल्लेख आपने शास्त्रों, पुराणों आदि में सुना होगा। अनेक देवी-देवताओं, महामानवों व ऋषि-मुनियों से जुड़े प्रसंगों में इसका विवरण है कि वे आह्वान करने पर प्रकट भी होते हैं, साक्षात दिखाई देते हैं और अंतध्र्यान भी हो जाते हैं। मौजूदा वैज्ञानिक युग में यह वाकई अविश्वनीय है। … Read more

आशंका संकट को न्यौता देती है?

हाल ही बेहद जीवट वाली पत्रकार श्रीमती राशिका महर्षि से चर्चा के दौरान एक विषय निकल कर आया। वो ये कि आदमी को आशंका में नहीं जीना चाहिए। आशंका में जीने से हम जिस भी बात की आशंका कर रहे होते हैं, वह घटित हो सकती है। इसके विपरीत यदि हम अपरिहार्य आशंकित स्थिति में … Read more

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है?

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है? यह सवाल मेरे जेहन में अरसे से है। इसका जवाब जानने की बहुत कोशिश की, मगर अब तक उसका ठीक ठीक कारण नहीं जान पाया हूं। भले ही आज वास्तविक कारण का हमें पता न हो, मगर यह परंपरा जरूर कोई … Read more

ज्यादा जीने की इच्छा क्यों? जी भी लिए तो क्या हो जाएगा?

एक शब्द है जिजीविषा। इसका अर्थ होता है जीने की इच्छा। हर आदमी अधिक से अधिक जीना चाहता है। इसके पीछे मोटे तौर पर ये इच्छाएं हो सकती हैं कि बेटे-बेटियां पढ़-लिख कर कमाने योग्य हो जाएं, उनकी शादी हो जाए, वंश वृद्धि हो, पोते-पोती देखें। और अगर पड़ पोते-पड़ पोतियां देख लें तो कहने … Read more

भगवान के दाढ़ी-मूंछ क्यों नहीं है?

आपने देखा होगा कि देवी-देवताओं से इतर जितने भी महामानव हुए हैं, जिन्हें कि हम भगवान मानते हैं, उनके चित्रों व मूर्तियों में चेहरों पर दाढ़ी-मूंछ नहीं होती। इसमें भी किंचित अपवाद हो सकता है, मगर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है? इस गुत्थी को समझने से पहले ये भी समझना होगा … Read more

दरगाहों, गुरुद्वारों व दरबारों में सिर क्यों ढ़कते हैं?

आपने देखा होगा कि दरगाहों, गुरुद्वारों व सिंधी दरबारों में सिर ढ़कने की परंपरा है। इस परंपरा का सख्ती से पालन भी किया जाता है। दरगाहों में अमूमन टोपी पहनने की परंपरा है। टोपी न हो तो रुमाल से सिर ढ़कते हैं। गुरुद्वारों में पगड़ी न होने पर रुमाल का इस्तेमाल किया जाता है। कई … Read more

अंत्येष्टि के दौरान कपाल क्रिया होने पर वहां मौजूद लोग जगह क्यों छोड़ते हैं?

आपने देखा होगा कि जब हम किसी की अंत्येष्टि में जाते हैं तो कपाल क्रिया के दौरान लोग एक-दूसरे को जगह छोडऩे को कहते हैं, अर्थात जिस स्थान पर हम बैठे होते हैं, उसे बदलने को कहा जाता है। सभी ऐसा करते भी हैं। मैने इस बारे में अनेक लोगों से बात की कि जगह … Read more

जो हम सोचते हैं वो क्या ब्रह्मांड में कहीं न कहीं विद्यमान है?

एक सवाल मेरे दिमाग में अनेक बार आता है कि हम जो कुछ भी सोचते हैं अथवा कल्पना करते हैं, क्या वह ब्रह्मांड में कहीं न कहीं विद्यमान है? यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि हम और हमारा दिमाग ब्रह्मांड का ही हिस्सा हैं, उससे अलग नहीं, तो जो कुछ भी दिमाग में आता है, … Read more

देवी-देवताओं को भी चमचागिरी पसंद हैं?

इस दुनिया में आम तौर पर हर आदमी अपना मतलब सिद्ध करने के लिए चमचागिरी करता है। हालांकि ऐसे भी लोग हैं जो कि आत्म सम्मान के नाम पर चमचागिरी से परहेज रखते हैं। उनमें से एक मैं भी हूं। मैं किसी को पूरी सहृदयता से अपेक्षित सम्मान तो दे सकता हूं, मगर चमचागिरी नहीं … Read more

धार्मिकता के साथ और ज्यादा अधार्मिक होता आदमी

मोटे तौर पर माना जाता है कि हमारे पूर्वज अधिक धार्मिक व ज्यादा आध्यात्मिक थे। हमारे बड़े-बूढ़े अधिक नैतिक थे, लेकिन अब मानवीय मूल्यों का हृास होता जा रहा है। संवेदना कम होती जा रही है। उसी के साथ पारिवारिक इकाइयां टूट कर छोटी होती जा रही हैं। पहले माता-पिता की सेवा का बड़ा महत्व … Read more

कुत्ते की पूंछ सा है आदमी?

धरती पर अब तक न जाने कितने भगवान, ऋषि-मुनि, महापुरुष, युग पुरुष, चिंतक, दार्शनिक, ज्ञानी, संत-महात्मा आदि अवतरित हुए हैं। हम उत्तरोत्तर बुद्धिमान व सभ्य भी होते जा रहे हैं, मगर आदमी दिन ब दिन और बदमाश, कुटिल व स्वार्थी होता जा रहा है। तो सवाल ये उठता है कि उनके अवतरण का आखिर लाभ … Read more

error: Content is protected !!