आखिर समापन समारोह में भी नहीं आईं कलेक्टर

पुष्कर मेले के इतिहास में पहला अवसर
aarushi a malik thumbअजमेर (एस. पी. मित्तल): अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर मेले के इतिहास में शायद यह पहला अवसर होगा, जब समापन समारोह में जिला कलेक्टर उपस्थित नहीं हुआ हो। समारोह में उपस्थित बड़े अधिकारी भी यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि इतने महत्त्वपूर्ण मौके पर जिला कलेक्टर किन कारणों से नहीं आईं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरुवार को पवित्र पुष्कर सरोवर में कोई दो लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। इतने श्रद्धालुओं की उपस्थिति पुष्कर नगरी खचाखच भरी हुई थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही मेले का मुख्य समापन समारोह मेला मैदान में आयोजित होता है। इस समारोह में सात दिवसीय मेले में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं को पुरस्कार भी दिए जाते हैं। समारोह में देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए सांस्कृतिक एवं मनोरंजक कार्यक्रम भी होते हैं। गुरुवार को मेला मैदान पर यह सब परंपरा तो निभाई गई, लेकिन जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक की अनुपस्थिति पूरे समारोह में चर्चा का विषय बनी रही। समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से राज्य के पशुपालन विभाग के सचिव राजेश्वर सिंह  तथा अध्यक्ष के रूप में संभागीय आयुक्त धर्मेन्द्र भटनागर उपस्थित थे, लेकिन इन वरिष्ठ अधिकारियों को भी कलेक्टर की अनुपस्थिति खलती रही। इस संबंध में जब संभागीय आयुक्त भटनागर से पत्रकारों ने सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि अपनी अनुपस्थिति के बारे में कलेक्टर मलिक ही बता सकती हैं। कलेक्टर के नहीं आने की मेरे पास कोई जानकारी नहीं है। असल में भटनागर भी कलेक्टर मलिक के बारे में कुछ भी कहने से बच रहे थे। यह बात अलग है कि प्रशासनिक सिस्टम में कलेक्टर, संभागीय आयुक्त के अध्ीान ही काम करता है, लेकिन भटनागर की मजबूरी यह है कि वे आरएएस से पदोन्नत होकर आईएएस बने हैं, जबकि डॉ. मलिक का चयन सीधे आईएएस के पद पर हुआ है। भटनागर अगले कुछ ही महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। जबकि डॉ. मलिक का आईएएस का लम्बा सेवाकाल है।
गुरुवार को कलेक्टर की अनुपस्थिति इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि बड़ी संख्या में श्रद्धालु पुष्कर में स्नान के लिए मौजूद थे। आमतौर पर ऐसे आयोजनों में कलेक्टर उपस्थित रहते ही हैं। मेला स्थल पर ही प्रशासन का कैम्प लगता है और इसमें कलेक्टर का कमरा अलग से होता है। चूंकि कार्तिक पूर्णिमा का स्नान मध्य रात्रि से ही शुरू हो जाता है, इसलिए प्रशासन के तमाम अधिकारी रातभर पुष्कर में ही कैम्प करते हैं। अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए जिला पुलिस अधीक्षक महेन्द्र चौधरी तथा प्रशासन के तमाम अधिकारी मध्यरात्रि से ही पुष्कर में डेरा जमाए रहे, लेकिन कलेक्टर की अनुपस्थिति से प्रशासन के अधिकारियों में टीम भावना नजर आई। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार नाराजगी के चलते ही कलेक्टर ने पुष्कर मेले से दूरी बनाई राखी। संभागीय आयुक्त भटनागर ने मेले के शुभारंभ पर ही संभागीय आयुक्त का पद संभाला था। पद संभालने के साथ ही भटनागर ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता पुष्कर मेला है। भटनागर ने पुष्कर पहुंचकर मेले की व्यवस्थाओं को भी देखा तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों को निर्देश भी दिए। एक तरफा याताया भी करवाया। भटनागर के इस कथित दखल के साथ ही पुष्कर के भाजपा विधायक सुरेश सिंह रावत ने भी देश्ीा-विदेशी पर्यटकों को मेले में सुविधाएं देने के सुझाव कलेक्टर को दे दिए। डीसी और विधायक की कार्यवाही से कलेक्टर के मेले के फोटो ने आग में घी डालने का काम किया। कलेक्टर को अपने परिवार के सदस्यों के साथ हॉट एयर बैलून और बैलगाड़ी में घूमते दिखाया गया। इन घटनाक्रमों के बाद ही कलेक्टर ने पुष्कर मेले से अचानक दूरी बना ली। शुरुआत में जो कलेक्टर पुष्कर में घूम-घूम कर सड़कों से स्वयं कचरा उठा रही थीं, वो ही कलेक्टर पिछले चार दिनों में पुष्कर में सक्रिय नहीं दिखी। जब राज्य सरकार और प्रशासन के तमाम अधिकारी मेले के आयोजन में व्यस्त थे, तब कलेक्टर ने जिले के नसीराबाद, केकड़ी, सरवाड़, ब्यावर आदि उपखंड कार्यालयों का निरीक्षण किया और भामाशाह शिविरों की जांच पड़ताल की। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर मेले के दौरान ही उपखंड कार्यालयों का निरीक्षण कितना जरूरी था? हर सवाल का जवाब तो मुख्य सचिव ही दे सकते हैं, लेकिन पुष्कर मेले के इतिहास में शायद यह पहला अवसर होगा, जब कार्तिक पूर्णिमा के महास्नान और सरकार के समापन समारोह में जिला कलेक्टर उपस्थित नहीं रही। कलेक्टर की अनुपस्थिति पर सत्तारूढ़ भाजपा के जनप्रतिनिधि भी खामोश हैं।

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