पुष्कर तीर्थ विकास के झूठे दावे और नेताओं के खूंटे से बंधी निरीह जनता

अरुण पाराशर
सम सामयिक चर्चा ,कल रात उमड़ा गौ सेवको ने दया भाव का परिचय देते हुवे ,नगर पालिका के द्वारा पकड़े सेकड़ो आवारा विचरण करने वाले गौवंश को कराया मुक्त , प्रश्न यह नही हैंकि, नगर पालिका जो कर रही हैं वो सही हैं या जो गौ सेवकों का भावुक होकर दया भाव दिखाकर उन्हें फिर बीच बाजार गन्दगी ओर प्लास्टिक खाने के लिए मुक्त करा देना– फिर जो हुआ क्या यही स्थायी समाधान है ? जरा सोचिए समाधान की सच्चाई क्या यही है ,धर्म और सरकार के बीच संघर्ष में हर रोज लहूलुहान होते मूक पशु ओर बेसुध जनता — आज सुबह सुबह ही पुष्कर ब्रह्म चौक में सांडो का बीच बाजार जबरदस्त युद्ध , राह चलते यात्रियों में मची भगदड़, दुकानदारों ने भारी मस्कत कर बड़ी मुश्किल से सांडो को छुड़ाया। सांडो की लड़ाई में चार पांच महिलाओ को आई चोटें , यह स्थिति पुष्कर में हरेक चौक बाजार ,सरोवर के घाटों पर हर समय बनी रहती हैं। जिसमे हर दिन सांडो की गायों की लड़ाई में , लोग घायल ही नही भारी दुर्घटनाओ का शिकार हो लहूलुहान हो रहे हैं। जिनमे कइयो को अपनी हाड़ पसलियां भी तुड़वानी पड़ी हैं। पुष्कर की जनता जागरूक होने के बजाय किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रही है। या ऐसी घटनाओं की आदि हो गई है। यह भी हो सकता हैं जनता को व्यवस्था में सुधार पसन्द ही नही आता हो।ओर रोज रोज की बात समझ ,सब बाते दरकिनार कर ,जानवरों के साथ जीने की आदत में रम गए है।हम ओर हमारे मूक पशु ,जाएं तो जाएं कहाँ, साथ ही जीयेंगे, साथ ही मरेंगे। हम ,हिन्दू जो है, अतिशय धार्मिकता के साथ, हमारे में दया भावना का परिणाम है कि हम हर एक जीव के लिए मात्र दया दृष्टि दिखाकर ,दिखावा कर,अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेने में ही अपना धर्म समझ , वास्तविक समस्या के स्थायी समाधान का धर्म निभाने में असहाय ही नही मूक जानवर से बन जाते हैं। वहां हम जानवर की भांति , अलग अलग नेता के खूंटे के साथ बंधे रहकर , उन्हीं की राग में ,उनके इशारों में ही हिनहिनाते रह कर ,सच ओर हकीकत से मुहँ मोड़े ,भोले भाले निरीह जीवों सा स्वांग धारण कर लेते है। हमारे में इतना दमखम नही कि हम उन जन प्रतिनिधियों को बीच चौराहे पर पूछ सके कि हमने तुमको चुनकर , सत्ता में क्या इसलिए बैठाया हैं कि,उन्होंने क्यो नही जनता की मूल ओर बुनियादी समस्याओं को अपनी प्राथमिकता में रखा।ओर आज तक उनका समाधान क्यो नही हुआ ।पुष्कर तीर्थ सरोवर में जाने वाले गन्दे,सीवरेज के पानी ,व तीर्थ में एक आदर्श वृहद गौ शाला ओर नंदी शाला , क्या कभी हमारे चुने हुवे ,जन प्रतिनिधियों ने इन दो महत्वपूर्ण समस्याओ को कभी गम्भीरता से लेकर इसके स्थायी निदान में आज तक क्या किया ।क्या यह प्रश्न उनसे पूछा जा सकता हैं, नहीं, क्यो कि यदि,इन्हें याद होता तो क्या पुष्कर से दिल्ली तक कड़ी से कड़ी मिलाकर बनी हिंदूवादी सरकार में भी पुष्कर तीर्थ की यह दुर्दशा आज देखने को मिलती । हां हमारे जनप्रतिनिधि का दावा, जिन्होंने पुष्कर विकास में कोई कोर कसर नही छोड़ी,2600 सो करोड़ के विकास के दावों की बड़ी बड़ी किताबें छपवाकर, बतवाई गई, यहाँ तक कहाँ गया कि (तत्कालीन मुख्यमंत्री, माननीया जी के सामने ) मैने पुष्कर तीर्थ की 99.99% समस्याओं का समाधान करवा दिया है।अब कोई समस्या नही रही,ओर अब वे ही सत्ता जाते ही गला फाड् फाड् कर रोज विधान सभा मे ,पुष्कर की समस्याओं की झड़ी लगाए हुवे हैं। जनता ही पूछे कि वो 2600 सौ करोड़ कहाँ गए , ? सवाल यह हैं कि नेता जी के विकास का दावा सही कौन सा हैं। 2600 करोड़ का ,जिनमे 99.99% समस्याओं का समाधान वाला या ,आज मुहँ बाहें खड़ी वे ही गम्भीर समस्याएं ,जिनके लिए पुष्कर की जनता वर्षो से चिल्ला रही हैं। समस्याएं जस की तस हैं।हम नेताओं के खूंटो से बंधे पशु , क्या कभी पशुता का खूँटा तोड़ ,आजाद होकर ,खरी खरी सच्चाई को ,सच के चौराहे पर सवाल कर सकते है।जब तक हम पशुओ की भांति ,चरवाहों के खूंटो के बंधन से मुक्त नही होंगे ,ये हमे चराते रहेंगे हम चरते रहेंगे।हाँ खूंटो से बंधे रहना ,मतलब पड़े पड़े ,एक जगह चारा तो खाने को मिलता ही हैं , नेता जी का चारा खाएंगे ओर बदले में ऋण चुकाने में जुगाली भी उन्हीं के नाम की।क्या हमें अब भी,हमारी बुनयादी समस्याओं के स्थायी समाधान के सच को नही समझना चाहिए,या ये कि पंछी करे न चाकरी ,अजगर करे ना काम ,पुष्कर की जनता कह रही ,सबके दाता ,हमारे नेता राम । जय पुष्कर राज की।

अरुण पाराशर, सामाजिक कार्यकर्ता ,पुष्कर।

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