आस्था का सवाल है

रास बिहारी गौड़
रास बिहारी गौड़
शर्मा जी को आप जानते ही हैं। जो सुबह मोर्निंग वॉक पर सुस्ताते मिलते हैं। चाय की दुकान पर चाय और अखबार दोनों साथ पी रहे होते हैं। घरवाले और बाहर वालो के अलावा उनकी इज्जत सब करते हैं। वे धर्म, राजनीति, समाज, खेल, व्यापार, शिक्षा, साहित्य, हर विषय पर समान अधिकार से घंटो बोल सकते हैं, बावजूद इसके कि किसी भी विषय के बारे में उन्हें सिर्फ उतना ही पता होता है जितना विषय को उनके बारे में। वे हर सहमति पर असहमत और असहमति पर सहमत होकर सिद्ध करते हैं कि वे सही हैं, शेष गलत हैं।
इन दिनों शर्मा जी मध्ययुगीन बर्बरता के विरुद्ध आधुनिक कर्तव्य बोध से ग्रस्त हैं। उनकी आस्थाएं अतिरिक्त आहत हैं, विश्वाश घायल है। कोई उनकी आस्था से खेले, विश्वाश को कुमार विश्वास बना दे। भला कैसे सहन कर सकते हैं। जिसके लिए उनके पूर्वजों ने कुर्बानियां दी, वे उन दी हुई कुर्बानियां को अब वापस लेना चाहते हैं। मरें हुए को जिंदा और जिंदो को मारकर दोनों को बैलेंस करना चाहते हैं, ताकि पूर्वजों का एहसान और पीढ़ियों का बलिदान एक साथ जता सके। सवाल आस्था का जो है।
अब सवाल है तो जबाब भी होना चाहिए। वैसे हर सवाल का, कभी- कभी बिना सवाल का, जबाब उनके पास होता ही है। बल्कि एक ही जबाब होता है। ईंट का जबाब पत्थर की तरह, उनके लिए हर सवाल ईंट है और जबाब पत्थर है। देश, धर्म, जाति, कला, कविता, फ़िल्म किसी का भी कोई सवाल हो, जबाब पत्थर ही हैं ,पत्थर ही से दिया जाना है। फिलहाल तो आस्था का सवाल है और वे जबाब दे रहे हैं। उनके हाथ में पत्थर हैं , सामने सवाल का सर है।
आस्था के सवाल से उनकी आस्था पर चोट पहुंची है, इसलिए वही चोट सम्पूर्ण सम्मान के साथ समाज को वापिस करना चाहते हैं। आप उसे हिंसा कहते हैं। वे उसे धर्म कहते हैं। धर्म के नाम पर की गई हिंसा कर्मयोग कहलाती है ।यदा- यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारती,, आपने महाभारत सीरियल देखा ही होगा। गीता का यही ज्ञान है। अपनी आस्थाओं के लिए हिंसा, आगजनी, मार -काट, सब धर्म-सम्मत है। आप उनका विश्वाश तोड़ रहे है और वे आपके हाथ पांव भी ना तोड़े। क्या हाथ पांव विश्वास से बड़े हैं? शरीर का सवाल आस्था पर भारी है। नहीं! बिल्कुल नहीं! सवाल आस्था का है।
जो इसे अभिव्यक्ति मानते है। फिल्म, कहानी, कला से स्वम को अभिव्यक्त करने की आजादी माँगते हैं, तो फिर ये आजादी शर्मा जी को भी चाहिए। वे भी देश के संम्मानीय नागरिक हैं, बल्कि औरों से ज्यादा संम्मानीय हैं, मंत्री से संतरी तक पहले उन्हें पूछता है, बाद में किसी और की पूछ होती है। सबकी अभिव्यक्ति के अपने-अपने तरीके हैं। उनके तौर तरीके स्कूल के दिनों से ही अलग हैं। जब स्कूल में मास्टर बच्चों को पढ़ाता था और उन्हें ठोकता था। लोग पढ़ना सीख गए, उन्हें ठोकना आ गया। अज्ञानी अपनी अभिव्यक्ति पढ़ लिख के बताते हो, वे ठोक-पीट कर जताते हैं।
इन दिनों एक फ़िल्म को लेकर शर्मा जी की आस्था का सवाल कुछ ज्यादा बड़ा हो रहा है ओर वे उसी अनुपात में जबाब उससे भी बड़ा दे रहे हैं। क्योंकि सवाल आस्था का है। सवाल ही स्यापा है। शर्मा जी का स्यापा।

रास बिहारी गौड़

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