निर्भया कांड के बाद, कुछ बदला क्या?

इस तस्वीर को देखकर सहज सरल भाषा मे कुछ कहने की कोशिश की है .. मन मे उभरी पीड़ा को क्रमशः लिखती गयी….बस यूँही… बिना किसी शीर्षक के…..क्योकि मैंने कविता लिखने की मंशा से शब्दों को कलमबद्ध किया ही नही …..

“इतनी रैलियां ,आक्रोश
और वेदना देखकर
आश्वस्त थी पर
निर्भया कांड के बाद,
कुछ बदला क्या?
आज यह गुस्सा क्यों
पहली बार हुआ क्या?
हर दूसरे दिन
एक मासूम बच्ची
चढ़ जाती है कैसे
हवस के हाशिये पर,
हमारी नही तो छोड़िए जी
बेवजह सोचे क्या?
बड़े लोग शामिल न हो तो
खबर खबर सी लगती नही,
राजनीति के दलदल में यू भी
संवेदनाओ की कोई जगह नही,
सिस्टम की सख्ती ही
इलाज है इन हैवानो का,
सरेआम लटका दो
या फिर काट दो
शरीर के उस अंग को बेझिझक
कांप उठे हर बलात्कारी
कुछ ऐसा ही अब हो,
लड़कियों पर
गंदी नज़रों के पहरे
आज भी है कल भी रहेगे यही,
बात मेरे मन की शेष यही
धरोहर संस्कारों की
अब बेटों को दीजिये
बेटियों को नही,
‎देखकर इन जहरीली हवाओं को
‎पहले सोचती थी पर आज नही,
‎कि किस्मत में मेरे बेटे ही है
‎एक बेटी क्यों नही…..
‎एक बेटी क्यो नही……

सुनीता अग्रवाल
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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