जन जन के लोक देवता ——गोगाजी पीर

डा. जे.के.गर्ग
लोक कथाओं एवं प्रचलित मान्यताओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। गोगा को जहरीले सर्पों के जहर को नष्ट करने की अलौकिक शक्ति प्राप्त हुई थी । लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजडी, गाँवगाँव में गोगा पीर |

लोक कथाओं के मुताबिक राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से पहिले स्थान पर रखा गया है | वीर गोगाजी का जन्म विक्रम सवंत 1003 भादों शुक्ला नवमी चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था| गोगाजी के पिता चौहान वंश के शासक जेवरसिंह थे और उनकी माता बाछल थी | यह भी माना जाता है कि गोगाजी का जन्म नाथ संप्रदाय के योगी गोरक्षनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। योगी गोरक्षनाथ ने ही गोगादेवजी की माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था। जिसके प्रभाव से महारानी बाछल से जाहरवीर (गोगाजी), पुरोहितानी से नरसिंह पाण्डे, दासी से मज्जूवीर, महतरानी से रत्नावीर तथा बन्ध्या घोड़ी से नीलाववीर का जन्म हुआ। इन सभी महापुरुषों ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए विधर्मी राजाओं से कई युद्ध किये इन लड़ाईयों में नरसिंह पांडे,मज्जुवीर और रत्नावीर तो वीर गति को प्राप्त हो गये और गोगाजी और नीलावीर ही जीवित बचे। प्रचलित लोककथाओं के मुताबिक उनकी पत्नियों के रूप में केलमद और सुरियल का का जिक्र किया जाता है |

उत्तर प्रदेश में गोगाजी को हिदू गोगा पीर वहीं मुसलमान उन्हें जहरपीर कहते हैं | इसीलिए ददरेवा गावं हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया है | गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है | एक हजार से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं पर है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति भी है । भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्‍था टेककर मन्नत एवं दुआएं माँगते हैं। कई जगहों पर गोगामेड़ियों की स्थापना हुई है। गोगाजी के जन्म स्थान ददरेवा में बनी मेड़ी को ‘शीश मेड़ी’ कहा जाता है। ददरेवा की मेड़ी बाहर से देखने पर किसी राजमहल से कम नहीं लगती है। दादरेवा का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान गोरखधुणा यानि जोगी आसन है , यहाँ पर ही सिद्ध तपस्वियों का धूणा एवं गोरखनाथ जी और अन्य की समाधियाँ भी हैं। गोगाजी का समाधि-स्थल ‘धुरमेड़ी’ कहलाता है।

मानगढ़ जिले में है। यहाँ पुरानी मूर्तियाँ हैं। यहाँ टिल्लागोरखाना हैं जिनमें भी स्थान दर्शनीय यह गोगामेड़ी स्थान भादरा से 15 किमी उत्तर-पश्चिम मे हनुमानगढ़ जिले में है। यहाँ पुरानी मूर्तियाँ हैं। यहाँ के पुजारी चायल मुसलमान हैं जो चौहान के वंशज हैं। गोगामेड़ी में गोरख-टिल्ला व गोरखाणा तालाब दर्शनीय स्थान हैं। गोरखमठ में कालिका व हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं। गोगाजी के भक्त ददरेवा के साथ ही गोगामेड़ी आने पर यात्रा सफल मानते हैं। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। कहा जाता है कि गुरु गोरक्षनाथ के योग, मंत्र व प्रेरणा से श्रीजाहरवीर गोगाजी ने नीले घोड़े सहित धरती में जीवित समाधि ली। अनेको मान हैं जो च गोरख-टिल्ला व गोरखाणा कहा जाता है कि गुरु गोरक्षनाथ के योग, मंत्र व प्रेरणा से श्रीजाहरवीर गोगाजी ने नीले घोड़े सहित धरती में जीवित समाधि ली। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा यानि एक महीने तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं। मेले में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं |

वहां अखाड़े में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजडी, गाँव-गाँव में गोगा वीर | लोकदेवता गोगाजी को शत शत नमन

प्रस्तुतिकरण—-डा.जे. के.गर्ग

संदर्भ –ददरेवा के इतिहास का यह भाग ‘श्री सार्वजनिक पुस्तकालय तारानगर’ की स्मारिका 2013-14: ‘अर्चना’ में प्रकाशित मातुसिंह राठोड़ के लेख ‘चमत्कारिक पर्यटन स्थल ददरेवा, विभिन्न पत्र एवं पत्रिकायें आदि |

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