राजेन्द्र बाबू के जीवन के अनसुने प्रेरणादायक संसमरण पार्ट 5

आजादी आन्दोलन में शामिल होने के लिये छोडी वकालत

dr. j k garg
उन दिनों डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के गिने चुने नामी वकीलों में गिने जाते थे। उनके पास मान-सम्मान और पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलनशुरू किया तो राजेन्द्र बाबू ने वकालत छोड़ दी और अपना पूरा समय मातृभूमि की सेवा में लगाने लगे। अपने मित्र रायबहादुर हरिहर प्रसाद सिंह के मुकदमों की पैरवी के लिए उन्हेंइंग्लैण्ड जाना पड़ा। वरिष्ट बैरिस्टर अपजौन इंग्लैण्ड में हरिहर प्रसाद सिंह का मुकदमा लड़ रहे थे इन्हीं के साथ राजेन्द्र बाबू को काम करना था। अपजौन राजेन्द्र बाबू की सादगीऔर विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए। एक दिन किसी ने अपजौन को कहा कि राजेंद्र बाबू भारत के सफलतम वकीलों में से हैं किन्तु उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने हेतु अपनीवकालत त्याग दी है और वे असहयोग आन्दोलन में गांधीजी के निकटतम सहयोगी बन गये हैं।
बैरिस्टर अपजौन को आश्चर्य हुआ और वे सोचने लगे कि राजेन्द्र बाबू इतने दिनों से मेरे साथ काम कर रहे है पर अपने मुंह से आज तक अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अपजौनएक दिन राजेन्द्र बाबू से बोले- लोग सफलता, पद और पैसे के पीछे भागते हैं और आप हैं कि इतनी चलती हुई वकालत को आपने ठोकर मार दी। आपने गलत किया। राजेन्द्र बाबू नेजवाब दिया “ एक सच्चे हिंदुस्तानी को अपने देश को आजाद कराने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए, वकालत छोड़ना तो एक छोटी सी बात है”। अपजौनउनकी देश भक्ति की भावना के सम्मुख नत मष्तक हो गये।

Dr J. K. Garg

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