एक मतला और कुछ शेर
जब से ज़ुबान के सारे अशआर फीके हो गए तब से मिरे मुल्क में त्यौहार फीके हो गए… उम्मीद इन्सान की इन्सान से, कसैली हो गई लहज़े कड़वे हो गए, मददगार फीके हो गए.. लज़्ज़त थी झूठी इमलियों में, बचपने में मिठास थी दुनियावी ढकोसलों में कुछ यार फीके हो गए… ज़माने की नौटंकियों में … Read more